VS CHAUHAN KI REPORT
एशिया में जब दूसरे मुस्लिम मुल्कों में महिलाओं को लेकर खासा पिछड़ापन था, तब अफगानिस्तान की महिलाएं उनके लिए एक मिसाल की तरह थीं. 1920 के दशक में ही वहां महिलाओं की शिक्षा, नौकरी और आत्मनिर्भरता के बारे में सोचा जाने लगा था. अफगानिस्तान के इतिहास में कई महिलाएं बहुत प्रसिद्ध हुईं.
अफगानिस्तान में 20 के दशक से ही उसकी अंग्रेजों के हाथों आजादी के बाद से महिलाओं की स्वतंत्रता और बराबरी को आंदोलन खड़े होने लगे थे. महिलाओं ने वहां सबसे पहले अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. तालिबान का रुख बिल्कुल ही महिला विरोधी लगता है, जो आमतौर पर महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित कर देना चाहते हैं और उनके अवसरों को खत्म देने का विचार रखते हैं. जानते हैं अफगानिस्तान के इतिहास की उन पांच महिलाओं के बारे में, जिन्होंने महिलाओं के लिए बड़ा काम किया. यहां तक कि तालिबान के राज में उनसे मुकाबला किया.
तुर्कलार की गवार्शद बेगम-गवार्शद बेगम 1370-1507 के तिरुरिद वंश के शासन के दौरान एक जानी मानी हस्ती बनीं. वो 15वीं सदी में थीं. उनकी शादी शासक शाहरुख तिमूरिद से हुई. वो बेशक रानी थीं लेकिन पहली बार अफगानिस्तान में महिलाओं के हक को लेकर आवाज उन्होंने उठाई. वो मंत्री भी बनीं और अफगानिस्तान में कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई.
वह कलाकारों और कवियो को आगे बढ़ाती थीं. उनके दौर में कई महिला कवियों को सामने आने का मौका मिला. तब तिमूरिद वंश की राजधानी हेरात था, जो उनकी अगुवाई में कला का बड़ा केंद्र बना. स्थापत्य और कलाएं फलीफूलीं. जो अब भी अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में जिंदा हैं. उन्होंने धार्मिक स्कूल, मस्जिदें और आध्यात्मिक केंद्र बनवाए.गवार्शद बेगम चतुर राजनीतिज्ञ भी थीं. पति के निधन के बाद उन्होंने पसंदीदा पोते को गद्दी पर बिठाकर 10 सालों तक राज किया.
राबिया बालखाई अफगानिस्तान के बालख में 09 सदी में राजपरिवार में पैदा हुईं. वो देश की आधुनिक पर्शियन भाषा में कविताएं लिखने वाली कवियित्री थीं. वो इतनी शोहरत हासिल करने लगीं कि कहा जाता है कि दूसरे कवि उनसे इर्ष्या रखने लगे. ये भी कहा जाता है कि इसी इर्ष्या के चलते ही किसी जाने-माने पुरुष शायर ने उनकी हत्या करा दी.
हालांकि तथ्य ये है कि राबिया की हत्या उनके भाई राजपरिवार के एक गुलाम के साथ प्यार में पड़ने की वजह से की. वो उस गुलाम की बहादुरी पर रीझ गईं थीं. लेकिन प्यार को लेकर राबिया ने जो शायरी लिखी, उसने उन्हें अफगानिस्तान के इतिहास में अमर कर दिया. उन्हें बराबरी और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक माना जाने लगा.
रानी सोराया तारजी अफगानिस्तान की सबसे प्रभावशाली राजपरिवार की सदस्य थीं. वो अफगानिस्तान के राजा अमानुल्ला खान की बीवी थीं. जिन्होंने 1919 से 1921 तक अंग्रेजों से युद्ध करके उसे आजाद कराया था. जो उस समय अफगानिस्तान में प्रोग्रेसिव विचारों वाले शासक थे. सोराया ना केवल उच्च शिक्षित थीं बल्कि वो महिलाओं के अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा की पैरोकार भी थीं. उन्होंने तभी अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोले. महिलाओं की पहली पत्रिका इरशाद ए निशवान शुरू की. उनका विजन अब भी देश की महिलाओं को प्रेरणा देता है.
नादिया अंजुमा 1980 में हेरात में पैदा हुईं. नादिया ने दूसरी महिलाओं के साथ भूमिगत स्कूल और साहित्यिक गतिविधियों में शिरकत शुरू की. हेरात यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मुहम्मद अली राहयाब ने उन्हें साहित्य की शिक्षा दी. ये वो दौर था जबकि तालिबान ने महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी लगा रखी थी. जब तालिबान का राज खत्म हुआ तब नादिया ने हेरात यूनिवर्सिटी में पढाई शुरू की. जल्दी ही वो जानी मानी कवियित्री के तौर पर जाने जाने लगीं. उनकी कविताओं की किताब गुल ए दाउदी प्रकाशित हुई. नादिया को तब और शोहरत मिलने लगी जब ये पता लगा कि उनके पति ने ही कविताएं लिखने की वजह से उनकी हत्या कर दी. अपनी मृत्यु में नादिया ने अफगानिस्तान की महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. उनकी कविताओं के अनुवाद हो चुके हैं और इस पर एलबम भी बन चुके हैं.
लेफ्टिनेंट कर्नल मलालाई काकर कंधार में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध संबंधी विभाग की प्रमुख थीं. वो उन्होंने बहुत सी महिलाओं की मदद की. उन्हें बचाया. वो एक ऐसे परिवार से थीं, जहां उनके पति और भाइयों ने भी पुलिस विभाग में काम किया था. वो कंधार पुलिस एकेडमी से ग्रेजुएट होने वाली पहली महिला थीं. देश में इनवेस्टिगेटर बनने वाली भी पहली महिला थीं. वो जेंडर आधारित हिंसा पर फोकस करती थीं. 28 सितंबर 2008 को तालिबान के गनमैन ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. लेकिन उनकी दिलेरी, साहस और कानून का पालन कराने प्रवृति के चलते अफगानिस्तान में काफी बड़ी संख्या में महिलाओं ने पुलिस और दूसरी सेवाओं में आना शुरू किया.