VS CHAUHAN KI REPORT
भारत की आजादी और पाकिस्तान के जन्म के 75वें वर्ष में नैनीताल और अल्मोड़ा से पाकिस्तान का एक महत्वपूर्ण रिश्ता याद आता है। इसे इतिहासकारों ने कभी महत्व नहीं दिया और आम लोगों को इसकी ज्यादा जानकारी हुई नहीं। इस रिश्ते की सबब थीं कुमाऊंनी मूल के परिवार में अल्मोड़ा में जन्मी और नैनीताल में प्रारंभिक शिक्षा पाने वाली शीला (आईरीन पंत)। आईरीन ने पाकिस्तान की स्थापना के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। मदर ऑफ पाकिस्तान और पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी बनने का गौरव उनको हासिल हुआ। वह भारत रत्न के समकक्ष पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ऐ-इम्तियाज से भी सम्मानित की गईं।
कुमाऊं की यह युवती न केवल मोहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई में पाकिस्तान मूवमेंट कमेटी की पदाधिकारी रहीं बल्कि इसकी वित्तीय सलाहकार भी रहीं। उनका विवाह यूपी लेजिस्लेटिव काउंसिल में उपाध्यक्ष लियाकत अली से हुआ था जो बाद में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने। शीला पंत का जन्म 1905 में अल्मोड़ा के पंत परिवार में हुआ था। उनके पिता डेनियल पंत यूपी सचिवालय में कार्य करते थे। एक वैद्य रहे उनके दादा तारादत्त पंत ने क्रिश्चियन धर्म अपना लिया था। इस कारण परिवार सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया गया। नैनीताल के एक चर्च सेंट जॉन इन द बाइल्डरनेस में शीला का बपतिस्मा कर उनका नाम आईरीन कर दिया गया। इतिहासकार प्रो. अजय रावत के अनुसार आईरीन के एक भाई एडवर्ड पंत नैनीताल में वन विभाग में कार्यरत थे। एडवर्ड के पुत्र शेरवुड कॉलेज में लेखाकार और एक पुत्री शीला नैनीताल में बिशप शॉ स्कूल में प्रबंधक और प्रधानाध्यापिका रहीं।
आईरीन पंत प्रतिभाशाली थीं और सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर भाग लेतीं थीं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी वे पूरी लगन से सक्रिय रहीं। उन्होंने 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लियाकत अली का उत्तेजक भाषण सुना तो उनके प्रति आकर्षित हुईं। 1933 में दोनों ने विवाह कर लिया, हालांकि लियाकत अली पहले से विवाहित और एक पुत्र के पिता थे। विवाह के लिए आईरीन ने इस्लाम धर्म अपना लिया और राना लियाकत अली कहलाई जाने लगीं। उनकी जीवनी की लेखिका दीपा अग्रवाल और पाकिस्तान की तहमीना अजीज अयूब की पुस्तकों में उल्लेख है कि पाकिस्तान की स्थापना के बाद लियाकत अली और दो पुत्रों अशरफ और अकबर के साथ वे पाकिस्तान चली गईं। लियाकत के प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें पाकिस्तान की प्रथम महिला के साथ ही लियाकत मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मामलों की मंत्री का दर्जा भी मिला।
1951 में लियाकत अली की हत्या के बाद वे बेसहारा हो गईं क्योंकि लियाकत कोई भी संपत्ति या दौलत छोड़ कर नहीं गए थे। वर्ष 1954 में उन्हें हॉलैंड (नीदरलैंड) में पाकिस्तान का राजदूत बनाया गया। छह वर्ष बाद इटली में राजदूत बनाया गया। उन्हें हॉलैंड का सर्वोच्च सम्मान ग्रैंड क्रॉस ऑरेंज प्रदान किया गया। विकिपीडिया के अनुसार उन्हें किसी पाकिस्तानी नागरिक को दिया जाने वाला पाक का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार निशान-ए-इम्तियाज और मादरे वतन की उपाधि भी दी गई थी। उन्हें मानद डॉक्टरेट, संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार पुरस्कार, वुमन ऑफ द वर्ल्ड सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए गए। 1973 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें सिंध प्रांत का गवर्नर और कराची विश्वविद्यालय का कुलाधिपति भी बनाया। वर्ष 1990 में कराची में उनका निधन हो गया।
पाक में महिला सुधारों को दिया अंजाम
नैनीताल। वर्ष 1961 के बाद से आईरीन के रिश्ते तत्कालीन सैन्य प्रशासक प्रधानमंत्री अयूब खान से बेहतर नहीं रहे। लेकिन वे खुद की बनाई संस्था ‘ऑल पाकिस्तानी वीमेंस एसोसिएशन’ के माध्यम से महिला उत्थान के कार्यों में लगी रहीं। मतभेद के बावजूद उनकी ओर से प्रस्तुत महिला सुधारों के मसौदे को अयूब खान को अध्यादेश के जरिये कानूनी दर्जा देना पड़ा। इनमें असीमित बहुविवाह को समाप्त करना, दूसरी शादी से पूर्व वर्तमान पत्नी की सहमति अनिवार्य किया जाना शामिल था। उनके सुझाव पर ही पाकिस्तान में तात्कालिक तौर पर तीन तलाक की प्रथा को स्थगित किया गया था।
आईरीन पंत के आवास में है पाकिस्तानी दूतावास
नैनीताल। पाकिस्तान की स्थापना से पूर्व आईरीन लियाकत अली के साथ दिल्ली के उस बंगले में रहती थीं जो लियाकत ने उन्हें विवाह के समय उपहार में दिया था और इसका नाम राना के नाम पर ‘गुल-ए-राना’ रखा था। पाकिस्तान जाते वक्त इस दंपती ने इसे पाकिस्तानी दूतावास के लिए पाकिस्तान को दान कर दिया। वर्तमान में भी पाकिस्तानी दूतावास आईरीन के इसी पूर्व आवास में है।
बचपन से ही बेहद प्रतिभाशाली थीं
नैनीताल। बाल्यकाल से ही आईरीन पंत बेहद प्रतिभाशाली थीं। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने लखनऊ लालबाग हाईस्कूल और फिर आईटी कॉलेज से अर्थशास्त्र में एमए और धार्मिक अध्ययन किया। वे सदैव कक्षा में प्रथम स्थान पर रहीं। तब के कलकत्ता से उन्होंने प्रथम श्रेणी में टीचर्स ट्रेनिंग प्राप्त की और लगभग दो वर्ष दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज में प्रवक्ता भी रहीं।
अंत तक पसंद थी गहत की दाल, दाड़िम की चटनी
नैनीताल। आईरीन पंत भले ही बचपन में ही कुमाऊं से चली गई थीं और दुनिया जहान में घूमती रहीं लेकिन खास कुमाऊंनी स्वाद गहत की दाल और दाड़िम की चटनी हमेशा उनकी पसंद बनी रही। दीपा अग्रवाल ने पुस्तक में इसका उल्लेख करते हुए कहा है कि उन्होंने अपने भाई को टेलीग्राम से जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए लिखा था ‘आई मिस कुमाऊं’।