VS CHAUHAN KI REPORT
यूनिट 731′, शायद आपने यह नाम भी ना सुना हो, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यह दुनिया के सबसे खतरनाक प्रयोगशालाओं में से एक था। असल में यह जापानी सेना द्वारा बनाई गई एक ऐसी गुप्त लैब (प्रयोगशाला) थी, जिसे इतिहास का सबसे खौफनाक टॉर्चर हाउस माना जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां जिंदा इंसानों पर ऐसे-ऐसे खतरनाक प्रयोग किए जाते थे, जिसके बारे में जानकर लोगों की रूह तक कांप जाती है। वैसे तो यह लैब चीन के पिंगफांग जिले में था, लेकिन इसका संचालन जापानी सेना करती थी।
दरअसल, यूनिट 731 को जापानी सेना ने जैविक हथियार बनाने के लिए शुरू किया था, ताकि वो अपने दुश्मनों पर इसका इस्तेमाल कर सकें। वो यहां जिंदा इंसानों के शरीर में खतरनाक वायरस और केमिकल्स डालकर उनपर प्रयोग करते थे। इंसानों को इस खौफनाक लैब में ऐसी-ऐसी यातनाएं दी जाती थीं, जिसके बारे में शायद ही आपने कभी सोचा हो।
आपको बता दें कि यूनिट 731 लैब में चीन, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से पकड़े गए लोगों पर जानवरों की तरह प्रयोग होते थे। इस क्रम में कई लोग तो तड़प-तड़प कर मर जाते थे, लेकिन जो जिंदा बच जाते थे, उन्हें मार दिया जाता था और यह देखने के लिए उनकी चीड़-फाड़ की जाती थी कि आखिर वो बच कैसे गया। कहते हैं कि ऐसे प्रयोग करने के लिए 3000 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
इस लैब में फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग नामक एक प्रयोग के दौरान इंसान के हाथ-पैर को पानी में डुबा दिया जाता था और वो जब तक जम न जाए, तब तक पानी को ठंडा किया जाता था। इसके बाद जमे हुए हाथ-पैरों को गर्म पानी में पिघलाया जाता था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि अलग-अलग तापमान का इंसानी शरीर पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है। इस खतरनाक प्रयोग में कई लोगों की जान तक चली जाती थी।
कई बार ऐसा भी होता था कि इंसानों के शरीर में पहले खतरनाक वायरस डाला जाता था और उसके बाद उनके प्रभावित अंगों को यह देखने के लिए काट दिया जाता था कि बीमारी आगे भी फैलती है या नहीं। वैसे तो इस खतरनाक प्रयोग में कई लोग अपनी जान गंवा देते थे, लेकिन जो बच जाते थे, उनके ऊपर फिर ‘गन फायर टेस्ट’ किया जाता था, ताकि यह जाना जा सके कि बंदूक इंसानी शरीर को कितना नुकसान पहुंचा सकती है।
चीन के पिंगफांग में मौजूद यूनिट 731 खतरनाक प्रयोग करने वाला कोई इकलौता लैब नहीं था, बल्कि चीन में इसकी और भी कई शाखाएं थीं, जिनमें लिंकोउ (ब्रांच 162), मु़डनजियांग (ब्रांच 643), सुनवु (ब्रांच 673) और हैलर (ब्रांच 543) शामिल थे। हालांकि, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इन सारी प्रयोगशालाओं में खतरनाक प्रयोग करने का काम रूक गया और ये जगहें वीरान हो गईं। अब तो इनमें से कई जगहों पर लोग घूमने के लिहाज से भी आते हैं।