हरेला पर्व पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एसडीआरएफ बटालियन, जौलीग्रांट में वृक्षारोपण किया।

VS CHAUHAN KI REPORT

हरेला पर्व पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एसडी आरएफ बटालियन, जौलीग्रांट में वृक्षारोपण किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला उत्तराखंड का महत्वपूर्ण लोक पर्व है। इस दौरान उन्होंने कहा कि गुलदस्ते नहीं बदले में एक पौधा दें। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि मुझे गुलदस्ता मत दें। एक पौधा देंगे तो उसे सहेज कर रखा जाएगा।

सके साथ ही हरेला पर्व पर शुक्रवार को कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत, रेखा आर्य, प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी पौध रोपण किया। राज्य भर में आज लोगों ने इस पारंपरिक पर्व को मनाया और पौध रोपण कर पर्यायवरण बचाने के लिए अपना योगदान दिया। कुमाऊं में खुशहाली, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, धनधान्य और हरियाली का प्रतीक हरेला पर्व घर-घर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार 16 जुलाई को हरेला पर्व मनाया जा रहा है।

इससे एक दिन पूर्व यानी 15 जुलाई को हर काली (डिकर पूजन) किया गया। हरेला पर्व पर नौ दिन पूर्व घर के मंदिर में बोया गया हरेला मंत्रोच्चार के बीच विधिविधान से काटकर सभी परिजनों, पड़ोसियों, ईष्टमित्रों को शिरोधारण कराया जाता है।

हरेला पर्व के साथ ही सावन मास शुरू हो जाता है। पर्व से नौ दिन पूर्व घर में स्थापित मंदिर में पांच या सात प्रकार के अनाज को मिलाकर एक टोकरी में बोया जाता है। हरेले के तिनके अगर टोकरी में भरभराकर उगें तो माना जाता है कि इस बार फसल अच्छी होगी।

हरेला काटने से पूर्व कई तरह के पकवान बनाकर देवी देवताओं को भोग लगाने के बाद पूजन किया जाता है। पूजन के बाद घर परिवार के सभी लोगों के सिर पर हरेला चढ़ाया जाता है। इस मौके पर ‘लाग हर्याव, लाग बग्वाल, जी रयै, जागि रयै, यो दिन बार भेटने रयै’ शब्दों के साथ आशीर्वाद दिया जाता है।
कुमाऊं में हरेले की समृद्ध परंपरा रही है। पूर्व में परिजन अपने संबंधियों, घर से दूर प्रदेश में नौकरी करने वालों को हरेले के तिनके और देव मंदिर की अशीका (फूल) डाक से भेजते थे। आज भी कई परिवारों में यह परंपरा जारी है।

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