दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) का नाम ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे (Great Trigonometrical Survey) के पूर्व अंग्रेज अफसर के नाम पर दिया गया,
जबकि उनका इस पर्वत से कोई ताल्लुक नहीं था. गणितज्ञ राधानाथ सिकदार (Radhanath Sikdar) ने इस चोटी की ऊंचाई सबसे पहली पता की थी.
लगभग सप्ताहभर पहले ही इंटरनेशनल माउंट एवरेस्ट डे आकर गया है.
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को लेकर इस बीच एक बहस एक बार फिर जोर पकड़ हैकि एवरेस्ट का नाम बदलकर राधानाथ सिकदार होना चाहिए.
दरअसल सबसे पहले साल 1952 में राधानाथ सिकदार ने ही एवरेस्ट की ऊंचाई नापी थी, लेकिन अंग्रेजों ने इस चोटी का नामकरण अपने अधिकारी कर्नल जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर कर दिया.
देश-दुनिया में शहरों, राज्यों और सड़कों के नाम बदलने की बात कोई नई नहीं. किसी न किसी वजह से लगातार ऐसा होता रहा है, जिसके पीछे अक्सर इतिहास का हवाला दिया जाता है. अब हो सकता है कि माउंट एवरेस्ट के साथ भी ऐसा ही कुछ हो. असल में इस चोटी का नाम एवरेस्ट, जिस अंग्रेज अफसर के नाम पर पड़ा, उसका एवरेस्ट से कुछ लेना-देना नहीं था. इस बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट आई है, जिसमें लेखक ने एवरेस्ट और नए सुझाए जा रहे नाम राधानाथ सिकदार पर बात की है.
राधानाथ सिकदार ने चोटी की ऊंचाई पता लगाई
ये बात पचास के दशक की है. तब ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे के तहत पहाड़ों की ऊंचाइयां नापी जा रही थीं. इसका हिस्सा राधानाथ भी थे. सर्वे में एवरेस्ट की ऊंचाई नापने के बाद उन्होंने इसे पीक 15 नाम दिया. बता दें कि तब तक ये पक्का नहीं हो सका था कि एवरेस्ट ही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है, बल्कि इसकी जगह कंचनजंघा का नाम लिया जाता था. सिक्किम के उत्तर पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर स्थित ये चोटी 8,586 मीटर के साथ दुनिया में तीसरे नंबर पर आती है.
ऐसे हुआ नामकरण
साल 1865 में सर्वे खत्म होने पर ये बात पक्की हो गई कि माउंट एवरेस्ट ही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है, न कि कंचनजंघा. इसके बाद इसके नामकरण की होड़ चली. तब अंग्रेजी हुकूमत थी. उन्होंने पूर्व सर्वेयर-जनरल रहे कर्नल जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर चोटी का नाम दे डाला, जबकि एवरेस्ट का इस पर्वत से कोई ताल्लुक नहीं था. साल 1830 से 1843 तक सर्वेयर रहे एवरेस्ट ने अपने कार्यकाल में ही राधानाथ सिकदार की नियुक्ति की थी, ताकि ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे का काम शुरू हो सके. सिवाय इसके अंग्रेज अफसर एवरेस्ट का आज के एवरेस्ट से कोई संबंध नहीं था.
राधानाथ सिकदार का नाम सर्वे मेनुअल से गायब
वैसे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को क्या नाम दिया जाए, ये बहस तब भी हुई थी. कईयों का कहना था कि इस पर्वत को स्थानीय नाम दिया जाना चाहिए, हालांकि अंग्रेजों ने इससे इनकार करते हुए अपने ही अधिकारी के नाम पर पर्वत को एवरेस्ट बना दिया. इसके अलावा भी कर् तरह की नाइंसाफियां अंग्रेजी कार्यकाल में दिखीं. जैसे सर्वे मेनुअल में सिकदार का नाम ही नहीं था, जबकि उन्होंने ही इसका पीक पता लगाया था.
कौन थे राधानाथ
राधानाथ सिकदार का जन्म 5 अक्टूबर 1813 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था. राधानाथ पढ़ाई में शुरू से ही तेज थे और खासकर गणित में उनकी दिलचस्पी की तब कोई टक्कर नहीं थी. कॉलेज के तुरंत बाद ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे में उनकी नौकरी पक्की हो गई. वे 30 रुपए महीने की पगार पर काम करने लगे, जो कि उस वक्त भारतीयों को मिलने वाली तनख्वाह में शानदार मानी जाती थी.स्कॉट इस पद पर आए और तभी राधानाथ को एवरेस्ट की ऊंचाई नापने का काम मिला.
साल 1852 में ही पता लगा लिया था
बेहद प्रतिभाशाली गणितज्ञ ने बगैर एवरेस्ट तक पहुंचे ये पता लगा लिया कि कंचनजंघा से कहीं ज्यादा ऊंचा एवरेस्ट है. साल 1852 में ही उन्होंने अपने विभाग को ये डाटा दे दिया था लेकिन इसे आधिकारिक चार साल बाद किया गया क्योंकि अंग्रेजों को इसपर भरोसा नहीं था. इसी दौरान एवरेस्ट का नामकरण भी विभाग के पूर्व अधिकारी एवरेस्ट के नाम पर हो गया.
ओबामा ने भी बदला है पर्वत का नाम
अब माउंट एवरेस्ट का नाम बदलने पर जोर दिया जा रहा है. इससे पहले पर्वतों के नाम बदलने का कई हवाले भी हैं. जैसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नॉर्थ अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी का स्थानीय नाम माउंट डेनली कर दिया था क्योंकि इसकी मांग लंबे समय से हो रही थी. हालांकि एवरेस्ट का नाम बदलने में कई तकनीकी दिक्कतें हैं. ये चोटी भारत और नेपाल की सीमा पर आती है, ऐसे में नाम बगैर नेपाल की सहमति के नहीं बदला जा सकता. ऐसे में कोई बीच का रास्ता भी निकाला जा सकता है, जिसमें सीमा बांट रहे देशों की सहमति से दुनिया की इस सबसे ऊंची चोटी का नया नामकरण हो सके.