नोएडा से मुकेश कुमार की रिपोर्ट
दिल्ली पुलिस ने इन ठगों को 5 दिन लगातार पीछे पड़कर दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब में पीछा करते हुए हरियाणा के कुरुक्षेत्र इलाके से दबोचा है. इन तमाम तथ्यों की पुष्टि रविवार को उत्तरी दिल्ली जिले के डीसीपी अंटो अलफोंस ने भी की.
भले ही आप किसी अनजान को अपने मोबाइल पर आया हुआ ओटीपी शेयर न करें. इसके बाद भी अगर आपके खाते से रकम गायब हो जाए तो आप किसे दोष देंगे? खुद को या फिर बैंक की लचर कार्यप्रणाली को. उत्तरी दिल्ली जिला पुलिस साइबर टीम ने’ऑनलाइन ठगों के एक ऐसे ही इंटरस्टेट संगठित गिरोह का भंडाफोड़ किया है, जिसे आपके मोबाइल पर आए ओटीपी की जरूरत ही नहीं पड़ती थी और आपके बैंक खाते में जमा धनराशि गायब हो जाती थी. अब से पहले भी तीनों ठग दिल्ली पुलिस की तरफ से गिरफ्तार करके जेल भेजे जा चुके थे. कोरोना काल में जेलों में भीड़ कम करने की प्रक्रिया के दौरान जब इन्हें कुछ दिन के लिए पैरोल पर जेल से बाहर किया गया, तो वो दोबारा वापस लौटकर जेल पहुंचे ही नहीं. दिल्ली पुलिस की नजरों से बचने के लिए इस साइबर ठग कंपनी ने दिल्ली ही छोड़ दी. दिल्ली छोड़ने के बाद ये ऑनलाइन ठग कंपनी गोवा, महाराष्ट्र, यूपी, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दक्षिण भारत के बेंगलुरु और कोयंबटूर जैसे तमाम बड़े शहरों में जाकर ऑनलाइन ठगी के इस काले कारोबार को अंजाम देने लगे थे.
दिल्ली पुलिस ने इन ठगों को 5 दिन लगातार पीछे पड़कर दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब में पीछा करते हुए हरियाणा के कुरुक्षेत्र इलाके से दबोचा है. इन तमाम तथ्यों की पुष्टि रविवार को उत्तरी दिल्ली जिले के डीसीपी अंटो अलफोंस ने भी की. गिरफ्तार साइबर ठगों का नाम विकास झा (31), विक्की उर्फ हिमांशु उर्फ सोनू (27) और अविनाश (36) है. साइबर ठगी में लिप्त इन ठगों की गिरफ्तारी के बाद जब इनसे पैरोल जंप करने की वजह पूछी गई तो वो बोले कि पैरोल से वापस जेल में जाकर क्या काम-धाम करते. चूंकि हम विचाराधीन कैदी थे वहां और इसलिए जेल के अंदर भी हम कोई काम-धाम करके कुछ कमा-धमा नहीं सकते थे, इसलिए जेल से बाहर रहकर कुछ ही दिन में करीब डेढ़ 2 करोड़ रुपए तो कमा लिए. अब ये पैसे पेट पालने और कोर्ट-कचहरी की मुकदमेबाजी, वकीलों की फीस में काम तो आ जाएंगे.
साइबर क्राइम टीम ने ठगी का खेल ताड़ लिया
दरअसल ठगी के इस मामले के भांडाफोड़ की शुरुआत तब हुई जब इसी साल फरवरी महीने में एक पीड़ित ने बताया कि बिना ओटीपी दिए ही उसके क्रेडिट कार्ड से करीब 37 हजार के गिफ्ट वाउचर खरीद लिए गए हैं. शिकायत पर उत्तरी जिला डीसीपी ने मामले की जांच के लिए जिला साइबर सेल प्रभारी सब-इंस्पेक्टर रोहित संड के हवाले कर दी. साथ ही जिला साइबर टीम की मदद के लिए उत्तरी जिला ऑपरेशन सेल प्रभारी एसीपी जयपाल सिंह, सब इंस्पेक्टर रोहित कुमार, एएसआई राजीव, महिला हवलदार सुनीता, सिपाही प्रकाश और अनिल को भी शामिल कर कर दिया गया. जिला साइबर सेल ने लंबे समय तक शिकायत में दर्ज बिंदुओं को ऑनलाइन निगरानी पर रख दिया. महीनों के प्रयासों के बाद जिला साइबर सेल टीम ताड़ गई कि साइबर क्राइम के जरिए ऑनलाइन ठगी का ये डर्टी गेम चल रहा है. इस गेम में कोई शातिर मास्टरमाइंड साइबर ठगों की टीम जुटी है, जो क्रेडिट कार्ड के जरिए ठगी कर रही है.
सैकड़ों मोबाइल फोन से करोड़ों रुपए की ऑनलाइन ठगी
उत्तरी जिला डीसीपी के मुताबिक आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले ही जिला साइबर क्राइम टीम ने जांच के दौरान ही पकड़ लिया था कि ठगी का ये धंधा वेबसाइट, क्रेडिट कार्ड, बल्क मैसेज, बैंक एकाउंट्स और एटीएम मशीन के जरिए हो रहा है. ठगी के इस धंधे में ऑनलाइन गिफ्ट वाउचर सिस्टम के लिप्त होने का भी इशारा जिला साइबर टीम को हो चुका था. पुलिस ने 100 ऐसे मोबाइल नंबरों की गुपचुप निगरानी शुरू कर दी, जो ठगी के इस काले कारोबार की जद में संदिग्ध नजर आ रहे थे. शक होने पर जिला साइबर सेल की टीमों ने राष्ट्रीय राजधानी से जुड़े हरियाणा और यूपी की पुलिस से भी संपर्क साधा तो पता चला कि हरियाणा के फरीदाबाद और गुरुग्राम में भी इन्हीं ठगों के स्टाइल पर कुछ शिकायतें मिली हैं. लिहाजा ये तय हो गया कि ये साइबर क्राइम गैंग भले दिल्ली का हो, मगर ठगी के धंधे में उसके हाथ लंबे हैं.
सबसे पहले नजर में फंसा ठग कंपनी का सरगना
जिन मोबाइल नंबरों को उत्तरी जिला पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया, उनमें से कुछ नंबरों की डिटेल मिलते ही पुलिस टीमों ने विकास झा नाम के साइबर ठग को नजर में ले लिया. चार-पांच दिन लगातार पीछा करने के बाद उत्तरी दिल्ली जिला साइबर सेल की टीमों ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र इलाके से तीनों ठगों को दबोच लिया. गिरफ्तार साइबर ठगों ने ऑनलाइन ठगी की जो ट्रिक बताई, उसने एक बार को तो पुलिस टीम को भी हैरत में डाल दिया. पता चला कि ये ठग जोड़तोड़ के जरिए कुछ प्राइवेट बैंकों से ग्राहकों की गोपनीय डिटेल हासिल कर लेते थे, उसके बाद उनके मोबाइल नंबरों पर बल्क में मैसेज भेजते थे. जैसे ही किसी बल्क मैसेज पर कोई अनजाने में अपनी डिटेल फीड करता वो डिटेल इन ठगों को घर-बैठे मिल जाती थी. इसी डिटेल के जरिए इन ठगों को अनजान लोगों के क्रेडिट कार्ड की भी डिटेल हाथ लग जाती थी. हमारे-आपके इन क्रेटिड कार्ड के माध्यम से ये गिरोह पहले गिफ्ट वाउचर खरीदता.
ऑनलाइन ठगी से पहले और ठगी के बाद
गिफ्ट वाउचरों के जरिए ये ठग कीमती मोबाइल और अन्य ऐसा सामान खरीद लेते, जिसे बाजार में सस्ते दामों पर आसानी से बेचा जा सकता था. इस खरीदे गए सामान में सबसे ज्यादा संख्या होती थी नए और कीमती मोबाइल फोन की. गिरोह के कब्जे से बड़ी संख्या में नए मोबाइल फोन भी जब्त किए गए हैं. गिफ्ट वाउचर से खरीदे गए मोबाइल फोन और अन्य कीमती सामान को बेचने से मिली रकम गिरोह के ठग अपने बैंक खातों में ऑनलाइन जमा करा लेते थे. बैंक खातों में रकम पहुंचते ही ये ठग उस रकम को एटीएम मशीन पर जाकर कैश में निकाल लेते थे. पता ये भी चला है कि ये ठग कंपनी ठगी के इस कारोबार को करने के लिए पहले एजुकेशन वेबसाइट्स बनवाते थे. फिर उनमें ठगी की अपनी जरूरतों के हिसाब से कुछ खास किस्म के परिवर्तन कर लेते. फिर इन वेबसाइट्स के जरिए भी आम लोगों की खास और बेहद निजी डिटेल का बेजा इस्तेमाल करते थे.