फ़लस्तीनियों और इसराइल के बीच एक हफ़्ते बाद भी ख़ूनी संघर्ष जारी है. दोनों पक्षों के बीच का ये संघर्ष अब वैश्विक मुद्दा बन गया है. इस संघर्ष को रोकने की कोशिशें जारी हैं और इसी कड़ी में कई देश अलग-अलग धाराओं में बँट गए हैं. ऐसे में जानते हैं कि इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष में दुनिया के कौन से देश कहाँ खड़े हैं.

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फ़लस्तीनियों और इसराइल के बीच एक हफ़्ते बाद भी ख़ूनी संघर्ष जारी है. फ़लस्तीन के चरमपंथी संगठन हमास की तरफ़ से रॉकेट हमले हो रहे हैं और इसराइल भी आक्रामक जवाबी कार्रवाई में जुटा है.

दोनों देशों की जनता के बहुत से लोग मारे जा रहे हैं इस संघर्ष में अब तक सैकड़ों जाने जा चुकी हैं. इसराइली हमलों से ग़ज़ा में भारी नुक़सान हुआ है.

दोनों पक्षों के बीच का ये संघर्ष अब वैश्विक मुद्दा बन गया है. इस संघर्ष को रोकने की कोशिशें जारी हैं और इसी कड़ी में कई देश अलग-अलग धाराओं में बँट गए हैं.

अधिकतर इस्लामिक देश फ़लस्तीनियों के समर्थन में दिखते हैं तो इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने 25 देशों को उनका देने के लिए शुक्रिया कहा है.

ऐसे में जानते हैं कि इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष में दुनिया के कौन से देश कहाँ खड़े हैं.

अमेरिका और यूरोपीय देश इजराइल के समर्थन

सुपर पावर अमेरिका से शुरू करें, तो इसराइल से उसकी क़रीबी किसी से छिपी नहीं है. अमेरिका हमास को चरमपंथी संगठन मानता है और संयुक्त राष्ट्र में हमास के ख़िलाफ़ निंदा का प्रस्ताव भी ला चुका है जो खारिज हो गया था.

हालांकि अमेरिका ने संघर्ष विराम और शांति बनाए रखने की अपील की है और राजनयिक स्तर पर इसकी कोशिशें भी हो रही हैं.

सूत्रों के मुताबिक  इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बात की थी. अमेरिका ने फ़लस्तीनियों के रॉकेट हमले के जवाब में इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने ‘आम लोगों को निशाना बना रहे एक चरमपंथी संगठन’ और ‘चरमपंथियों को निशाना बना रहे इसराइल’ के बीच फ़र्क़ की बात भी कही.

हालांकि, फ़लस्तीन में मानवाधिकार का मसला ज़रूर राष्ट्रपति जो बाइडन के सामने चुनौती बना हुआ है. जो बाइडन ने फ़लस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास से भी फोन पर बात की. अमेरिका ने दोनों पक्षों के विवाद के समाधान को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है.

यूरोपीय देश भी हमास को चरमपंथी संगठन मानते हैं और प्रमुख यूरोपीय देश ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने इसराइल के प्रति समर्थन जाहिर किया है. ब्रिटेन में फ़लस्तीनियों के समर्थन में कुछ संगठनों ने प्रदर्शन किया है.

ब्रिटेन की सरकार से इसराइल के हमलों का विरोध करने की मांग की जा रही है. ब्रिटेन में इसराइली दूतावास के बाहर भी लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया. लेकिन बोरिस जॉनसन की सरकार का रुख़ इससे अलग है.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ग़ज़ा में इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथियों के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर गहरी चिंता जाहिर की थी और दो पक्षों के विवाद के समाधान पर ज़ोर था. उन्होंने दोनों पक्षों से पीछे हटने की अपील की थी.

ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक रॉब ने एक ट्वीट में बताया था कि उन्होंने हमास के इसराइली नागरिकों पर रॉकेट हमले की निंदा करते हुए अपने इसराइली समकक्ष से बात की थी. साथ ही “इसराइल और क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्रों में हिंसा रोकने की अपील की थी.”

लेकिन, ब्रिटेन में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद पीएम बोरिस जॉनसन ने सख़्त प्रतिक्रिया जाहिर की है. उन्होंने ट्वीट किया, “हमारे समाज में कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं है. मैं ब्रिटेन के यहूदियों के साथ खड़ा हूँ, जिन्हें उस शर्मनाक नस्लवाद को नहीं झेलना चाहिए जो हमने आज देखा है.”

फ्रांस की राजधानी पेरिस में भी शनिवार को फ़लस्तीनियों के समर्थन में मार्च निकाला गया. लेकिन, विरोध प्रदर्शन पर पाबंदी के कारण पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाने की कोशिश की, जिसमें झड़पें भी हुईं.

वहीं, फ्रांस की सरकार इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करती है.

अरब न्यूज के मुताबिक  फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से फोन पर बात कर चुके हैं. मैक्रों ने हमास के रॉकेट हमले की निंदा की है और इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का बचाव किया है.

हालांकि, फ्रांस इसराइल और फ़लस्तीन दोनों ही पक्षों से शांति बरतने की अपील भी कर रहा है. फ्रांस के विदेश मंत्री ने कहा था कि फ्रांस यूरोप और मध्य पूर्व के देशों के साथ मिलकर इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रहा है.

जर्मनी ने भी इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है.

 जर्मन न्यूज़ वेबसाइट  के मुताबिक सरकार की प्रवक्ता स्टीफन सीबर्ट ने 14 मई को कहा था, “ये हिंसा किसी भी तरह से सही नहीं ठहराई जा सकती. इसराइल को आत्मरक्षा के तहत इन हमलों के ख़िलाफ़ ख़ुद को बचाने का अधिकार है.”

उन्होंने इसराइल पर हमास के रॉकेट हमले की निंदा की थी. जर्मनी में भी इसराइल के विरोध में प्रदर्शन किए गए हैं और सड़कों पर इसराइल के झंडे जलाए गए हैं.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं जिनके पास वीटो पावर है. अगर सुरक्षा परिषद में इसराइल और फ़लस्तीन के मसले पर वीटो की ज़रूरत हुई तो इसराइल को फ़ायदा मिल सकता है. स्थायी सदस्यों में रूस और चीन भी शामिल हैं.

इसके अलावा बिन्यामिन नेतन्याहू ने जिन 25 देशों को समर्थन देने के लिए धन्यवाद कहा है उनमें ऑस्ट्रेलिया, अलबेनिया, ऑस्ट्रिया, ब्राज़ील, कनाडा, कोलंबिया, साइप्रस, जॉर्जिया, हंगरी, इटली, स्लोवेनिया और यूक्रेन भी शामिल है.

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने दोनों पक्षों से संयम बनाए रखने की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि भले ही इसराइल को अपनी आत्मरक्षा का अधिकार है लेकिन फ़लस्तीनियों का भी सुरक्षित रहना ज़रूरी है

 कुछ देश फ़लस्तीनी समर्थन में

इस्लामिक देशों की बात करें तो उन्होंने इसराइल का कड़ा विरोध किया है और फ़लस्तीनी इलाक़े में हो रही हिंसा को रोकने की बात की है. सऊदी अरब, तुर्की, ईरान, पाकिस्तान, कुवैत और खाड़ी के कई देशों ने इसराइल की खुलकर निंदा की है.

सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने यरूशलम से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालने की इसराइली योजना को ख़ारिज कर दिया है.

सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा, ”सऊदी अरब फ़लस्तीनियों के साथ खड़ा है. हम फ़लस्तीन में हर तरह के कब्जे को ख़त्म करने का समर्थन करते हैं. हमारा मानना है कि इस समस्या का समाधान तभी होगा जब फ़लस्तीनियों का 1967 की सीमा के तहत एक स्वतंत्र मुल्क होगा, जिसकी राजधानी पूर्वी यरूशलम होगी.”

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप्प अर्दोआन ने इसराइल के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अख़्तियार किया है. अर्दोआन ने इसराइल को चेतावनी दी थी कि अगर पूरी दुनिया भी ख़ामोश हो जाए तो भी तुर्की अपनी आवाज़ उठाता रहेगा.

अर्दोआन ने कहा था, “मैंने सीरियाई सीमा के निकट जिस तरह दहशतगर्दों का रास्ता रोका, उसी तरह मस्जिद-ए-अक़्सा की जानिब बढ़ते हुए हाथों को भी तोड़ देंगे.”

तुर्की ने इसराइल पर प्रतिबंध लगाने की भी अपील की है.

ईरान ने भी खुलकर फ़लस्तीनियों का समर्थन किया है. साथ ही संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक देशों से इसराइल को फ़लस्तीन पर हमले करने से रोकने की अपील की है.

ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने पिछले हफ़्ते फ़लस्तीनियों से कहा था कि उन्हें इसराइल की क्रूरता को रोकने के लिए अपनी लड़ने की ताकत बढ़ानी है

 न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक खामनेई ने कहा था, “यहूदी सिर्फ़ ताकत की भाषा समझते हैं. इसलिए फ़लस्तीनियों को अपनी शक्ति और प्रतिरोध बढ़ाना चाहिए ताकि अपराधियों को आत्मसमर्पण करने और उनके क्रूर कृत्यों को रोकने के लिए मजबूर किया जा सके.”

पाकिस्तान भी फ़लस्तीनियों पर हमले को लेकर इसराइल की खुलकर आलोचना कर रहा है.

पाकिस्तानी के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने ट्वीट कर कहा था, ”मैंने अपने भाई, तुर्की के विदेश मंत्री से फ़लस्तीनियों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर फ़ोन पर बात की है. तुर्की ने पूरे मामले पर ओआईसी और यूएन की बैठक बुलाने का समर्थन किया है. इस्लाम के पहले क़िबला मस्जिद अल अक़्सा में उपद्रव और बच्चों की हत्या के साथ जबरन ख़ाली काराया जाना अस्वीकार्य है.

वहीं, संयुक्त अरब अमीरात ने भी यरूशलम में हुई हिंसा की निंदा की है और कहा है कि इसराइल की सरकार को शांति कायम करने और हमल रोकने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए.

संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इसराइल के साथ समझौतों पर दस्तख़त किए हैं. ये समझौते ‘अब्राहम एकॉर्ड्स’ के नाम से मशहूर हुए हैं. इन हालात को ‘अब्राहम एकॉर्ड्स’ का लिटमस टेस्ट भी कहा जा रहा है.

इराक़ के राष्ट्रपति बरहाम सालिह ने फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ हमलों कि निंदा की है और फ़लस्तीनियों के अधिकारों को प्राप्त करने के लिए उनके साथ एकजुटता दिखाई है.

उन्होंने महमूद अब्बास से बात करके वहाँ की मौजूदा स्थिति की जानकारी भी ली है.

इसराइल के पड़ोसी देश जॉर्डन के राष्ट्रपति अब्दुल्लाह का कहना है कि इसराइली हमलों को रोकने के लिए गहन कूटनीतिक स्तर पर प्रयास हो रहे हैं. हालांकि, जॉर्डन में फ़लस्तीन के समर्थन में रैलियां निकाली गई हैं.

एक और पड़ोसी देश लेबनान के राष्ट्रपति माइकन आउन ने फ़लस्तीन के ख़िलाफ़ इसराइल के आक्रामक हमले में दख़ल देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है. उन्होंने कहा था कि बिना न्याय के शांति नहीं होती और बिना अधिकारों के सम्मान के न्याय नहीं होता.

इसराइल का पड़ोसी देश मिस्र दोनों पक्षों के बीच संघर्ष विराम की कोशिशों में लगा है. मिस्र दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश करता रहा है.

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने ट्वीट किया था, “हम हर कोशिश करेंगे. इस टकराव को ख़त्म करने की उम्मीद है.”

ऐसे भी देश हैं जो फ़लस्तीनियों और इसराइल किसी भी तरफ़ झुकाव नहीं दिखाना चाहते हैं. उन्होंने या तो संतुलित राय जाहिर की है या मुद्दे का रुख किसी और दिशा में कर दिया है.

 कुछ देशों का संतुलित रुख दोनों देशों से शांति की अपील

भारत इस मामले में दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाता हुआ नज़र आ रहा है. भारत के फ़लस्तीनियों और इसराइल दोनों से अच्छे संबंध रहे हैं. ऐसे में उसके लिए किसी एक का पक्ष ले पाना मुश्किल है. इसलिए भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के दूत टीएस तिरूमूर्ति ने सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा, “भारत फ़लस्तीनियों की जायज़ माँग का समर्थन करता है और दो-राष्ट्र की नीति के ज़रिए समाधान को लेकर वचनबद्ध है.”

साथ ही कहा, “भारत ग़ज़ा पट्टी से होने वाले रॉकेट हमलों की निंदा करता है, साथ ही इसराइली बदले की कार्रवाई में भी बहुत बड़ी संख्या में आम नागरिक मारे गए हैं जिनमें औरतें और बच्चे भी शामिल हैं जो बहुत दुखद है.”

रूस की बात करें तो उसने इस हिंसा के चलते अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है. रूस ने कहा है कि इसराइल और फ़लस्तीनियों के संघर्ष के कारण उसकी सुरक्षा प्रभावित हो रही है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूसी सुरक्षा परिषद के सदस्यों के साथ बैठक में शुक्रवार को ये बात कही. चीन ने इसराइल-फ़लस्तीनियों के बीच संघर्ष के बहाने अमेरिका पर निशाना साधा है.

चीन ने कहा है कि ख़ुद को मानवाधिकारों का संरक्षक और ‘मुसलमानों का शुभचिंतक’ बताने वाले अमेरिका ने इसराइल के साथ टकराव में मारे जा रहे फ़लस्तीनियों (मुसलमानों) से आँखें फेर ली हैं. फ़लस्तीनियों को किस तरह युद्ध और आपदा की स्थिति में धकेल दिया गया है, वो अमेरिका को दिखाई नहीं दे रहा.

चीन ने कहा है कि अमेरिका को सिर्फ़ शिनजियांग (चीन) के वीगर मुसलमानों की चिंता होती है. फ़लस्तीनी मुसलमानों को लेकर वो खामोश है.

फ़लस्तीनी चरमपंथियों और इसराइली सेना के बीच संघर्ष एक सप्ताह बाद भी जारी है. संघर्ष का ये सिलसिला यरुशलम में पिछले लगभग एक महीने से जारी अशांति के बाद शुरू हुआ है.

इसकी शुरुआत पूर्वी यरूशलम के शेख़ जर्रा इलाक़े से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालने की धमकी के बाद शुरू हुईं जिन्हें यहूदी अपनी ज़मीन बताते हैं और वहाँ बसना चाहते हैं. इस वजह से वहाँ अरब आबादी वाले इलाक़ों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हो रही थीं.

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