राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में जब जब मुख्यमंत्री बदला गया तब-तब उसके बाद विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने उस पार्टी को सत्ता से बेदखल किया

वीएस चौहान की रिपोर्ट

उत्तराखंड राज्य में भाजपा को के सरकार को 4 साल पूरे होने जा रहे हैं,और कुछ नए मंत्रियों का दायित्व भी देना है इसी शनिवार को सिलसिले में आए दो पर्यवेक्षक ने कोर कमेटी की बैठक बुलाई । जिससे आगे की रणनीति तय की जा सके । लेकिन पार्टी के कुछ अपने ही लोग हो सकते हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री बदलने की हवा दे दी और राज्य में अफवाहों का बाजार गर्म हो चुका। लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री बदलने का परंपरा राज्य गठन से ही चलता रहा है,राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में जब जब मुख्यमंत्री बदला गया तब-तब राज्य की जनता ने उस पार्टी को सत्ता से बेदखल किया और इसका भारी नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा। जिसका सीधा फायदा विपक्ष को मिला और वह सत्ता पर काबिज हो गया। जब से उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तब से लगभग कुछ दिलचस्प आंकड़े अपनी कहानी कुछ और ही बताते हैं
पिछला आंकड़ा बयां करती है कि राज्य के गठन के समय वर्श 2000 में नित्यानंद स्वामी को राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन कुछ समय बाद नित्यानंद स्वामी को बदल कर भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद का कार्य भार दिया गया । जिसका भारी नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा और 2002 में कांग्रेस सत्ता में आ गई । लेकिन जब जब 2007 में चुनाव हुआ तो राज्य की जनता ने दोबारा भारतीय जनता पार्टी पर विश्वास जताते हुए पार्टी को सत्ता मे ले आई. और मुख्यमंत्री का कमान जनरल भुवन चंद्र खंडूरी को  सौंपी गई. लेकिन कुछ ही समय बाद भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री पद से बेदखल करते हुए या दूसरे शब्दों में कहें मुख्यमंत्री का पद परिवर्तन करते हुए रमेश पोखरियाल निशंक को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई लेकिन फिर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री पद से हटाकर खंडूरी है जरूरी का नारा देते हुए जनरल भुवन चंद्र खंडूरी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया,लेकिन इसका खामियाजा नुकसान पार्टी को भुगतना पड़ा और राज्य की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को पार्टी से बेदखल कर दिया । उसके बाद 2012 में कांग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया कांग्रेस ने भी वही किया जो भारतीय जनता पार्टी करती रही थी और विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाते हुए हरीश रावत को मुख्यमंत्री का पद सौंपा गया . जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा और पार्टी बेदखल होते हुए 2017 में भारतीय जनता पार्टी भारी बहुमत से सरकार बनाई जिसका नेतृत्व त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपा गया। त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने आप में एक स्वच्छ छवि का पहचान राज्य में स्थापित किया,जिसका फायदा पार्टी को भी मिला क्योंकि अधिकतर क्षत्रिय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी चुनकर आए । आज त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में चैथा साल समाप्त होने वाला है लेकिन मुख्यमंत्री बदलने का अफवाहों का बाजार गर्म हो चुका है, हर तरफ चर्चाएं हो रही है कि क्या भाजपा भी वही दोहरा आएगी जो उत्तराखंड में चलता आ रहा है लेकिन अगर उत्तराखंड  राज्य  का मुख्यमंत्री  बदला   जाता है तोआंकड़ों के अनुसार  फिर वही कहानी ना वहीं कहानी ना दोराई जाए के इसका नुकसान पार्टी को होना संभव है और इसका सीधा लाभ विपक्ष को मिल सकता है। और जनता कांग्रेस को सत्ता पर बैठा दें  इसके साथ साथ की जनता हर 5 साल बाद दूसरेेेेेे राजनीतिक दल  को सत्ता में ले आती है बहराल बीजेपी के अंदर क्या फैसला होता है  और 2022 के चुनाव अभी दूर है  जनता किस राजनीतिक दल को सत्ता पर लाती है?

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