देहरादून। उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। मानव-वन्यजीव संघर्ष में अभी तक सैकड़ों लोग घायल हो चुके हैं तो कई लोग जान गंवा बैठे हैं। इस संघर्ष को लेकर सामने आए आंकड़े सबको चैंका रहे हैं। इसमें गुलदार, बाघ और भालुओं के मानव बस्तियों के करीब आने और इस दौरान संघर्ष बढ़ने की घटनाएं शामिल हैं। वन्य जीवों के रिहायशी इलाकों में आने की कई वजह हैं, ो वाकई सभी को चितिंत कर रही हैं। हाल ही के दिनों में चमोली जिले से भालू की दो तस्वीरें सामने आई थीं। यह भालू रात के अंधेरे में मानव बस्ती के बीचों-बीच भोजन की तलाश करते हुए दिखाई दिए थे। इतना ही नहीं कूड़े में भोजन ढूंढते भालू की भी कुछ तस्वीरें भी सामने आई थीं। ऐसे भी सवाल उठने लगे, क्या गुलदार और बाघों के बाद भालुओं को भी मानव बस्तियां लुभा रही हैं।जानकार इसका जवाब इस रूप में देते हैं। उनका कहना है कि वन्य जीव जंगलों से बाहर केवल भोजन की तलाश में ही आते हैं। इन जीवों को जहां भी आसान शिकार मिल पाता है, वो उसी ओर रुख करते हैं। दरअसल, पालतू जानवरों के आसान शिकार और कूड़े में फेंके गए भोजन के लिए वन्यजीव मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं. सर्दी का मौसम भालुओं के सोने का समय यानी हाइबरनेशन का होता है, लेकिन भालू बस्तियों के इर्द-गिर्द नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि भालू भी बीते कुछ समय से काफी आक्रामक हुए हैं और उनका मानव बस्तियों की ओर भी रुख करना ज्यादा हुआ है। उत्तराखंड में राज्य स्थापना के बाद से ही अब तक करीब 1,637 लोगों पर भालुओं ने हमला किया है। इसमें से 50 से ज्यादा लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। गुलदार और बाघों के साथ है और इसी तरह के हालात अब भालू के प्रति भी दिखाई दे रहे हैं। यह आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि भालू का भी आक्रामक रुख मानव वन्यजीव संघर्ष के लिए काफी बड़ी वजह रहा है। उधर, वनों के करीब मानव बस्तियों और इंसानी गतिविधियों के चलते वन्यजीव वनों से बाहर निकलने को मजबूर हैं। जो मानव-वन्यजीव संघर्ष की वजह बन रहे हैं. हाल ही में सरकार ने भालू के इस आक्रामक रुख और हमलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रदेश में दो रेस्क्यू सेंटर बनाए जाने का फैसला लिया ह।. इसके लिए गढ़वाल में चमोली तो कुमाऊं में पिथौरागढ़ को चुना गया है।