सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई है जिसमें लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों के कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के आदेश को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन ने दाखिल की है जिसमें उसने कहा है कि डिजास्टर मैनेजमेंट कानून के तहत केंद्र द्वारा निजी प्रतिष्ठानों को पूरा वेतन देने का आदेश जारी करना गलत है। इससे संविधान में मिले व्यवसाय करने व बराबरी के अधिकारों का हनन होता है। याचिका में कोर्ट से पूर्ण वेतन देने के केंद्र सरकार के गत 29 मार्च के आदेश को रद करने की मांग की गई है।
पिछले सप्ताह महाराष्ट्र की एक टेक्सटाइल कंपनी ने भी ऐसी ही याचिका दाखिल की थी। हालांकि, महाराष्ट्र की ट्रेड यूनियन ने भी टेक्सटाइल कंपनी की याचिका में हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर कहा है कि पूर्ण वेतन पाना कर्मचारियों का अधिकार है। वैसे, ये याचिकाएं अभी तक सुनवाई पर नहीं लगीं हैं। इसी बीच लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन की ओर से ये नई याचिका दाखिल हो गई है।
लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन की याचिका में कोर्ट से केंद्र का गत 29 मार्च का आदेश रद करने की मांग की गई है। इसके बाद 30 मार्च को श्रम एवं रोजगार मंत्रलय ने सभी क्षेत्रीय लेबर कमिश्नर को एडवाइजरी जारी कर कहा कि लॉकडाउन से बंद हो गए प्रतिष्ठानों के सभी कर्मचारी इस दौरान ड्यूटी पर माने जाएंगे। सभी निजी व सरकारी प्रतिष्ठानों को सलाह दी जाती है कि वे कर्मचारियों को न तो नौकरी से निकालेंगे और न ही उनका वेतन काटेंगे। इतना ही नहीं इसमें अस्थायी और संविदा कर्मचारी भी शामिल माने गए।
याचिका में कहा गया है कि क्या डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 केंद्र को यह आदेश देने का अधिकार देता है कि वह निजी प्रतिष्ठानों को आपदा में कर्मियों को पूरा वेतन देने का आदेश दे। जबकि ऐसी ही स्थिति पर इंडस्टियल डिस्प्यूट एक्ट, 1948 में 50 फीसद वेतन देने का प्रावधान किया गया है। सवाल यह है क्या कर्मचारी वर्ग के हितों का ध्यान रखते हुए केंद्र सारा बोझ नियोक्ताओं पर डाल सकती है, जबकि नियोक्ता भी भारी नुकसान मे चल रहे हों।