उत्तराखंड: नैनी झील का सटीक आंकड़ा आया सामने, गहराई करीब ढाई मीटर घटी

नैनी झील की गहराई, जल की गुणवत्ता और आंतरिक स्थिति का सटीक आंकड़ा मिलने से झील के संरक्षण और संवर्धन का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह पहला मौका है जब झील का वैज्ञानिक विधि से सर्वेक्षण कर आंतरिक डाटा जुटाया गया है। सर्वेक्षण के बाद झील की अधिकतम गहराई 24.6 मीटर जबकि न्यूनतम चार मीटर दर्ज की गई है। जबकि चार साल पहले 27 मीटर बताई गई थी।

78 हजार बिंदुओं पर झाील की गहराई मापी

सोमवार को कलेक्ट्रेट सभागार में डीएम सविन बंसल ने पत्रकार वार्ता कर सर्वे के परिणामों की जानकारी दी। डीएम ने बताया कि पिछले साल नवंबर में आइआइआरएस देहरादून के वैज्ञानिकों के द्वारा नैनी झील का बैथोमैट्रिक विश्लेषण कार्य किया गया था। जिसमें झील की गहराई, पानी की गुणवत्ता को मापा गया था। वैज्ञानिकों द्वारा परीक्षण कार्य कर नमूने लिए गए थे। झील के करीब 78 हजार बिंदुओं पर गहराई मापते हुए कंटूर लेक प्रोफाइल तैयार की गई है। अब साल में दो बार इसरों से झील का बैथोमैट्रिक विश्लेषण कार्य करवाया जाएगा।

नौ से 13 मीटर गहरा है झील का सर्वाधिक हिस्सा

डीएम ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट के आधार पर झील के चार प्वाइंट  सर्वाधिक गहरे है, जिसमें पाषाण देवी मंदिर के समीप सर्वाधिक गहराई 24.6 मीटर, शनि मंदिर के समीप 23.7, शनि मंदिर से कुछ आगे 23 मीटर और मल्लीताल नयना देवी मंदिर के समीप झील की गहराई 22 मीटर के करीब है। झील का सर्वाधिक हिस्सा नौ से 13 मीटर गहरा है। वहीं औसत गहराई नौ मीटर दर्ज की गई है। यहां बता दें कि चार साल पहले सिंचाई विभाग ने रस्सी से झील की गहराई नापी थी जो करीब 27 मीटर बताई गई, अब वैज्ञानिक पद्धति से मापी गई झील की गहराई घटकर 24.6 मीटर आना चिंता बढ़ा रहा है।

बढ़े टीडीएस ने बढ़ाई चिंता

तल्लीताल फांसी गधेरा क्षेत्र और माल रोड के बीच के हिस्से की तरफ झील के पानी में टीडीएस टोटल डिजॉल्वड सॉलेड की मात्रा करीब साढ़े सात सौ मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई है। जो कि सामान्य से अधिक है। हालांकि यह खतरे की स्थिति 900 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है। लेकिन फिर भी इसे गंभीरता से लिया जाएगा। झील का औसत टीडीएस 300 से 700 मिग्रा प्रति लीटर मिला है।

कई स्थानों पर औसत से कम आक्सीजन

सर्वे से स्पष्ट हुआ है कि झील के कई हिस्सों में सामान्य से कम डिसॉल्व आक्सीजन पाई गई है। जो कि जलीय पारिस्थितिकी के लिए भी खतरा है। आक्सीजन की कमी के कारण ही अक्सर झील में मरी हुई मछलियां मिलती है। झील के पानी में अधिकतम डीओ 7.5 मिलीग्राम प्रति लीटर जबकि न्यूनतम 5.8 दर्ज किया गया है। डीएम ने बताया कि जिन हिस्सों में डीओ कम पाया गया है वहा एरिएशन के जरिये अधिक आक्सीजन छोड़ी जाएगी जिससे संतुलन बना रहे।

डिवाइस में लगे सेंसर से पता चलेगी झील की सेहत

नैनीझील की आंतरिक हलचल और पानी की गुणवत्ता अब सिर्फ विभागों तक सीमित नहीं रहेगी। शहरवासी भी झील की सभी जानकारियां ले पाएंगे। यूएन की स्वीकृति और फंड से झील में लेक रियल टाइम मॉनीटरिंग सिस्टम लगने से यह संभव हो पाएगा। डीएम सविन बंसल का दावा है कि देश में झील के संरक्षण के लिए पहली बार संयुक्त राष्टï्र से फंड जारी किया गया है। डीएम ने बताया कि झील की गहराई, पानी की अशुद्धि, आक्सीजन की पर्याप्ता को जानने के लिए मॉनीटरिंग डिवाइस लगाने का प्रस्ताव जिला प्रशासन की ओर से बनाया गया था। प्रस्ताव को संयुक्त राष्टï्र भेजा गया था। जिसको स्वीकृति मिल गई है। यूएन के प्रतिनिधियों से उनकी वार्ता भी हुई थी। एमओयू होने के बाद करीब 55 लाख की लागत से तल्लीताल पंप हाउस और मल्लीताल पंप हाउस क्षेत्र में झील में लेक रियल टाइम मॉनीटरिंग सिस्टम लगाए जाएंगे। डिवाइस में लगे सेंसर की मदद से झील के आंतरिक आंकड़े जुटाए जाएंगे। आंकड़ों को प्रदर्शित करने के लिए तल्लीताल डांठ पर स्क्रीन लगाई जाएगी। जिससे शहर के लोग पल-पल की झील की आंतरिक हलचल को जान पाएंगे।

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