भाई-बहन के प्रेम को समर्पित भाई दूज का आज मनाया जा रहा है। यह हर वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। भाई दूज का पर्व दिवाली का अंतिम उत्सव होता है, यह दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसे भाऊ बीज, भातृ द्वितीया या भाई द्वितीया भी कहा जाता है। यमराज और उनकी बहन यमुना से इस पर्व का इतिहास जुड़ा है, इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन बहनें भाइयों की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार आदि देते हैं।
भाई दूज का शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि का प्रारंभ 29 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 06 बजकर 13 मिनट से हो रहा है, जो 30 अक्टूबर दिन बुधवार को सुबह 03 बजकर 48 मिनट तक है।
पूजा मुहूर्त
भाई दूज पूजा का मुहूर्त 29 अक्टूबर को दोपहर में 01 बजकर 11 मिनट से दोपहर 03 बजकर 25 मिनट तक है।
पूजा विधि
इस दिन सुबह भाई अपनी बहन के घर जाते हैं। बहनें अपने भाई के सुखी जीवन के लिए अक्षत्, कुमकुम आदि से अष्टदल कमल बनाती हैं। फिर व्रत का संकल्प करके यमराज की विधि विधान से पूजा करती हैं। फिर यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करती हैं। फिर बहन शुभ मुहूर्त में अपने भाई को तिलक लगाती हैं और आरती उतारती हैं।
साथ ही वे ईश्वर से अपने भाई को दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं। वे चाहती हैं कि उनका भाई पूरे जीवन सुखी रहे है। बहन भाई को मिष्ठान खिलाकर मुंह मिठा कराती हैं। वहीं, भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं और उनके सुखी जीवन की कामना करते हैं। फिर बहन भाई को भोजन कराती हैं।
क्यों होती है यमराज और यमुना की पूजा
यमराज हर वर्ष अपनी बहन यमुना से मिलने उनके घर जाते थे। यमुना ने उनसे वरदान मांगा था कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जो बहन अपने घर पर भाई तिलक लगाकर भोजन कराएगी, उसे यम का डर न हो। ऐसे में उन्होंने यमुना को वरदान दे दिया, तब से भाई दूज मनाया जाने लगा।