शंभू बाॅर्डर पर आंदोलन के कई रंग.ट्रकों और ट्रैक्टरों के अस्थाई नगर में रहने-खाने और सोने का पूरा इंतजाम और लाउड स्पीकरों में लोकप्रिय गीत बजते रहते हैं।

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राजपुरा के शंभू बाॅर्डर पर बसे अस्थायी नगर में आंदोलन के कई रंग दिखाई दे रहे हैं। ट्रकों और ट्रैक्टरों की ये भुलभुलैया पांच किलोमीटर तक फैली है। प्रदर्शन स्थल पर कम से कम 15 हजार किसान हैं। रात के समय ट्रैक्टरों को बेडरूम और रसोई में तब्दील कर दिया जाता है। ट्रैक्टरों पर लगे लाउड स्पीकरों में लोकप्रिय गीत बजते रहते हैं।

पास ही चल रहे जेनरेटर का शोर भी उसमें घुल जाता है। भाई-चारे के साथ मिली-जुली रसोइयां चल रहीं हैं। युवा और बुज़ुर्गो का एक साथ रहने-खाने और सोने का इंतजाम है। इतना ही नहीं गर्मी के मौसम में कुछ ट्रक व ट्रालियां ऐसी हैं, जिसमें कूलर, एसी, टीवी व फ्रिज भी फिट हो जाते हैं।

गुरदासपुर के गांव चाचोकी के रहने वाले किसान रणजीत सिंह व जसपाल सिंह ने बताया कि लोग घर चलाने के लिए जरूरी सामान लाए हैं। ट्राली पर गैस सिलेंडर, लकड़ियां, मिल्क पाउडर के डिब्बे, आलू-प्याज के बोरे, आटा, दाल-चावल, मसाले और घर में तैयार देसी घी जैसी चीजें रखी हुई हैं, जो छह महीने के लिए पर्याप्त है।

सब्जियां और दूसरा सामान लेकर भी लोग पहुंच रहे हैं। किसान अपने साथ बर्तन, कपड़े, साबुन तेल आदि भी लेकर निकले हैं। उन्हें लगता है कि आंदोलन लंबा खिंच सकता है। गद्दों के नीचे बिछाने के लिए पराली का भी इंतजाम हैं। हर ट्रॉली पर बल्ब लगा है। एक ट्रॉली में बारह लोगों के रहने का इंतजाम है। किसान कहते हैं- ये हमारा बेडरूम है। हमें फर्क नहीं पड़ता कि यहां कितने दिन रहना पड़ेगा। जब हम घर से चले थे, तभी से हमें अंदाज़ा था कि ये लड़ाई लंबी चलेगी।

किसानों के विरोध-प्रदर्शन को कुछ राजनीतिक लोग व आम लोग ये कहकर बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं कि ये तो एक अलगाववादी आंदोलन है, जो सरकार को ब्लैकमेल करना चाहता है।

जबकि गांव मोही खुर्द के किसान तेजिंदर सिंह का कहना है कि किसान अपने हकों को लेकर सड़कों पर उतरे हैं, जबकि हमारे गुरुओं ने हमें यही तो सिखाया है कि सबकी सेवा करनी है। इंसाफ करना ऊपरवाले के हाथ में है, हमारे हाथ में नहीं। मजबूत इरादों, लंगर और एकजुटता की ताकत वाले इसी जज्बे के साथ किसान अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं।

किसान ज्ञान सिंह को श्रद्धांजलि देने पहुंचे सैकड़ों किसान
किसान नेता शनिवार को आंदोलन के दौरान मारे गए किसान ज्ञान सिंह के गांव पहुंचे। यहां किसान ज्ञान सिंह अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे नेताओं ने कहा कि ज्ञान सिंह की मौत की वजह केंद्र सरकार की धक्केशाही वाला रवैया है।
नेता बलबीर सिंह ने कड़े शब्दों में कहा कि ज्ञान सिंह की मौत से आंदोलन को बल मिला हैं और किसान एमएसपी की मांग को लागू करवाने के बाद ही वापस लौटेंगे। भारी पुलिस फोर्स के बीच सैकड़ों लोगों ने ज्ञान सिंह के अंतिम दर्शन करते हुए उनका संस्कार किया।
ट्रैक्टर-ट्रालियों में अस्थायी ठहराव
किसानों ने अपनी ट्रैक्टर-ट्रालियों को मॉडीफाई करके इसे अस्थायी ठहराव बना रखा है। इसमें लंगर बनाने के लिए राशन से लेकर सब्जियां, गद्दे, कंबल व अन्य सभी जरूरत का सामान रखा है।
नौजवानों से लेकर बुजुर्ग सभी आयु वर्ग के किसान पंजाब के कोने-कोने से मोर्चे में पहुंचे हैं, जिनके हौसले बुलंद हैं। किसानों का कहना है कि यह अस्तित्व की लड़ाई है। वह पीछे नहीं हटेंगे।
लंगर का प्रबंध कर रहे ग्रामीण, गुरुद्वारा कमेटियां भी कर रहीं सहयोग
मोर्चे की एक खास बात यह है कि किसानों के हक में बॉर्डर के आसपास लगते गांवों के लोग व गुरुद्वारों से भी कमेटियों के नुमाइंदे सामने आ रहे हैं। गुरदासपुर से पहुंचे किसान जरनैल सिंह, अमृतसर के गांव पंधेर कलां के बलविंदर सिंह (70) ने कहा कि किसानों के पास छह महीने का राशन मौजूद है, लेकिन अब तक लंगर बनाने की जरूरत बहुत कम पड़ी है। गुरुद्वारा कमेटियां व आसपास के ग्रामीण दूध से लेकर सब्जी रोटी, लस्सी, मिठाई, फल व पानी का लंगर लेकर रोज पहुंच रहे हैं।
फसलों को छोड़कर मोर्चे पर पहुंचे किसान
अपनी फसलों को रब आसरे छोड़कर किसान बड़ी गिनती में शंभू बॉर्डर पहुंच रहे हैं। जिस घर में एक ही पुरुष फसलों को संभालने के लिए हैं, वहां से भी हाजिरी मोर्चे में दर्ज कराई जा रही है। होशियारपुर से पहुंचे परमजीत सिंह ने बताया कि उनके पीछे फसलों को देखने वाला कोई नहीं है। पत्नी भी उनके साथ ही यहां है।
मालेरकोटला के मुसलमानों ने लगाया लंगर
आंदोलन में मालेरकोटला के मुसलमानों ने किसानों के लिए मीठे चावलों का लंगर लगा भाईचारे का संदेश दिया है। मुस्लिम फेडरेशन ऑफ पंजाब के प्रधान मुवीन फारूकी ने कहा कि यह केंद्र के खिलाफ होने की बात नहीं है, बल्कि हक की बात है।
 झंडो से आंसू गैस के गोलों का मुकाबला कर रहीं महिलाएं
हरियाणा की तरफ से दागी जा रहीं रबड़ की गोलियों व आंसू गैस के गोलों के मुकाबले महिलाएं झंडे व डंडे के दम पर मोर्चा फतेह करने का जज्बा रखती हैं। इनमें कईं 60 से 80 साल तक की बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल हैं, लेकिन उम्रदराज होने के बावजूद इनमें हौसले की कोई कमी नहीं है। महिलाओं का कहना है कि जब उनके बच्चे, भाई व पति अपने हकों के लिए आंदोलन कर रहे हैं तो फिर वह घर कैसे बैठ सकती थीं। इसलिए वह बाॅर्डर पर इकट्ठा हो रही हैं और जरूरत पड़ी तो वह खुद आगे होकर मुकाबला करेंगी।

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