एक भूतिया गांव था पिथौरागढ़ का मटियाल, जिसकी सूरत दो जिद्दी लोगों ने बदल दी।जानिए पूरी कहानी .

VSCHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA

उत्तराखंड (Uttarakhand) में भूतिया गांवों (Ghost Village) की कहानी खूब प्रचलित है। किसी भी अंधविश्वास और अफवाह के कारण लोगों का गांवों से पलायन खूब होता रहा है। चंपावत जिले के स्वाला गांव (Swala Village in Champawat) के बारे में पता करेंगे तो इसकी कहानी अजीब है। यहां वर्ष 1952 में एक दुर्घटना में 8 सैनिक हताहत हुए थे। गांववालों ने उन सैनिकों की मदद तब नहीं की थी। इसके बाद अफवाह फैली कि उन सैनिकों के भूत आ गए। इस अफवाह ने गांव को खाली करा दिया। वहीं, बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भी गांवों से पलायन जारी रहा। उत्तराखंड सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश के करीब 1700 गांवों को लोगों ने भूतिया मान कर अलविदा कह दिया।

लेकिन, उनमें से अब एक गांव गुलजार हुआ है।वह भी दो युवाओं की मेहनत और लगन से। कोरोना काल में गांव लौटे दोनों युवाओं ने गांव वापस लौटकर इस जगह को पूरी तरह बदल दिया।

यहां बात हो रही है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मटियाल गांव की। इस गांव को लोगों ने भूतिया मानकर छोड़ दिया था। वर्ष 2020 में कोविड लॉकडाउन के बाद दो युवा अपने गांव लौटे। मुंबई के एक रेस्तरां में काम करने वाले 34 वर्षीय विक्रम सिंह मेहता और पानीपत में ड्राइवर का काम करने वाले 35 वर्षीय दिनेश सिंह ने अपने गांव में रहने की ही ठानी। जून 2020 में जब वे गांव लौटे तो कई लोगों ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास किया। भूतिया गांव की भी बात कही। लेकिन, उन दोनों ने स्थिति में बदलाव लाने की ठान ली थी। जिद थी कि स्थिति को बदल देंगे। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से भूतिया गांव को फिर से ‘मटियाल गांव’ बना दिया।

पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान गांव लौटे दोनों युवाओं के सामने एक खाली गांव था। लेकिन, पानी की कमी नहीं थी। जमीन भी उपजाऊ। इसलिए, अनाज और सब्जियों की खेती करने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से 1.5 लाख रुपये का कर्ज लिया। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत स्थानीय ग्रामीणों को सब्सिडी पर 10 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक का ऋण दिए जाने का प्रावधान है। उन्होंने इसका लाभ लिया। खेती ने मुनाफा दिया तो अब दोनों ने गाय, बैल और बकरियां खरीदी। गांव में पशुपालन का काम शुरू कर दिया। उनकी तरक्की को देख लोगों में भूतिया गांव का भ्रम टूटने लगा है। अन्य परिवार भी अब घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं।

विक्रम सिंह मेहता बताते हैं कि मटियाल गांव में करीब दो दशक पहले तक 20 परिवार रहते थे। गांव में बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव ने लोगों को परेशान किया। रोजगार के साधन नहीं थे तो युवाओं ने नौकरी के लिए मेट्रो शहरों का रुख किया। वहीं, पड़ोस के गांव कोटली तक सड़क बनी तो बचे लोग वहां शिफ्ट हो गए। पांच साल इस गांव से आखिरी परिवार भी चला गया। इसके बाद से यह गांव भूतिया बन गया। लोग गांव छोड़ गए तो यहां की जमीन बंजर हो गई। इसके बारे में भूतिया गांव का किस्सा प्रचलित हो गया।

विक्रम ने कहा कि जब हम गांव लौटे तो यहां के बारे में कई यादें थीं। पहले यहां लोग गेहूं, धान और सब्जियां उगाते थे। हमारे गांव में उपजाऊ जमीन और पर्याप्त सुविधांए थीं। इसलिए, जब हम 2020 में वापस आए तो हमने गांव की अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित करने का प्रयास किया।

उत्तराखंड के बागवानी विभाग के सहायक विकास अधिकारी गौरव पंत ने कहा कि विक्रम मेहता और दिनेश सिंह को राज्य सरकार के एंटी-माइग्रेशन योजना के तहत सुविधा दी गई। राज्य सरकार ग्रामीण इलाकों से पलायन रोकने के लिए लगातार काम कर रही है। उन्होंने कहा कि मटियाल की पहचान एक पलायन प्रभावित गांव के रूप में की जाती है। मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के तहत ऐसे गांव में वापस बसने वाले लोगों को सुविधा दिए जाने का प्रावधान है।

सहायक विकास अधिकारी ने बताया कि उत्तराखंड में 50 फीसदी से अधिक पलायन वाले गांवों में लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दो युवाओं के जुनून का असर दख रहा है। कोटली में जाकर बसे तीन अन्य परिवार भी अब वापस मटियाल लौट आए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *