उत्तराखंड के 12 वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद धामी की डगर आसान नहीं: पढ़िए सीएम के सामने चक्रव्यूह की कौन-कौन सी चुनौतियां होंगी?

VSCHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA

युवा पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का बेशक गौरव प्राप्त हुआ है, लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ ही वह चुनौतियों के चक्रव्यूह में खड़े नजर आएंगे। चक्रव्यूह का सबसे पहला द्वार उपचुनाव की परीक्षा होगी।

उपचुनाव की चुनौती
धामी के सामने सबसे पहली चुनौती उपचुनाव की होगी। वह चुनाव हारने के बावजूद मुख्यमंत्री बने हैं। इस पद पर बने रहने के लिए उन्हें सबसे पहले उपचुनाव जीतकर विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी है। उनके लिए पांच विधायक पहले ही अपनी सीट खाली करने का एलान कर चुके हैं। धामी को ऐसी सीट का चयन करना है जहां उनकी चुनावी डगर आसान हो।

सरकार और संगठन समन्वय
मुख्यमंत्री के तौर पर धामी के सामने तीसरी बड़ी चुनौती सरकार और संगठन के मध्य समन्वय की है। चुनाव जीते विधायकों से लेकर पार्टी के काम करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं की अपनी सरकार से बहुत अपेक्षाएं होती हैं।  इन अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को किस हद तक पूरा और नियंत्रित कर पाएंगे, यह धामी के राजनीतिक कौशल पर निर्भर करेगा। सियासी जानकारों को मानना राजकाज सहज ढंग से चलाने के लिए जरूरी है कि सरकार और संगठन में बेहतर समन्वय हो।

दायित्वों के बंटवारे चुनौती
उत्तराखंड की सत्ता में दायित्वों का बंटवारा सबसे बड़ा सिरदर्द है। सरकार बनने के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, पूर्व विधायकों, वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की निगाहें सरकारी दायित्वों पर होती हैं। त्रिवेंद्र सरकार में संगठन के भीतर नाराजगी की एक बड़ी वजह दायित्वों के बंटवारे में देरी भी मानी गई। धामी के लिए दायित्वों का बंटवारा किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

बेलगाम नौकरशाही पर अंकुश
मुख्यमंत्री की भूमिका में अपनी छोटी लेकिन तेजतर्रार पारी में धामी ने नौकरशाही पर लगाम कसने की कोशिश की। उनकी एक कुशल प्रशासक की छवि बनी भी। अब पार्टी ने उन्हें पांच साल के लिए सत्ता की कमान सौंपी है। इन पांच साल में वह बेलगाम नौकरशाही पर अंकुश लगा पाएंगे, उनके लिए यह कम बड़ी चुनौती नहीं होगी।

चुनावी वादों को पूरा करना है
चुनावी चक्रव्यूह की एक बड़ी चुनौती चुनावी वादों को पूरा करने की भी है। धामी को पार्टी के दृष्टिपत्र को लागू करना है। उन पर समान नागरिक संहिता, भू कानून, जनसंख्या नियंत्रण सरीखे वादों को भी पूरा करने का दबाव रहेगा।

जीरो टॉलरेंस की नीति
चुनाव में भाजपा ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस बड़ा मुद्दा नहीं बनाया, लेकिन राज्य में भ्रष्टाचार सबसे प्रमुख मुद्दा रहा है। खनन, शराब, जमीन और सरकारी ठेकों में भ्रष्टाचार के मामले हर सरकार में प्रमुखता से उजागर होते रहे हैं। धामी सरकार के सामने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को लागू करना बड़ी चुनौती होगी। वह भी उस रूप में जब विपक्ष मुख्यमंत्री कार्यालय पर ही कई बार सवाल उठाता रहा है।

परिवहन

राज्य में परिवहन सेवाओं की हालत भी संतोषजनक नहीं है। खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में रोडवेज की बस सेवाएं बहुत कम हैं। और जो हैं भी वो धीरे धीरे बंद होती जा रही है। पिछले पांच साल में रोडवेज की 200 से ज्यादा बसें घट चुकी हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में बस सेवाएं न होने से लोगों को टैक्सी मैक्सी कैब और प्राइवेट वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है।

रोजगार

उत्तराखंड वर्षों से बेरोजगारी के दंश से जूझ रहा है। रोजगार दफ्तरों में इस वक्त 8 लाख से ज्यादा बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं। कोरेाना काल में लौटे प्रवासियों को रोजगार देने के लिए सरकार उपनल में भी रजिस्ट्रेशन खोले थे। उपनल में भी करीब एक लाख नाम दर्ज हो चुके हैं। पिछले पांच साल में सरकार 11 हजार के करीब ही नौकरियां दे पाई हैं।

पलायन

पलायन राज्य की बड़ी समस्याओं में शामिल है। रोजगार के अभाव में लोगों को शहरों और दूसरे राज्यों को पलायन करना पड़ रहा है। वर्ष 2011 तक राज्य के 968 गांव खाली हो गए थे। वर्ष 2011 के बाद इनमें 734 गांव और जुड़ चुके हैं। सीमांत क्षेत्रों के विकास के लिए ठोस योजनाएं न होने की वजह से पलायन का सिलसिला लगातार जारी है। कोरोना काल में लौटे प्रवासियों में भी ज्यादातर इसी वजह से वापस लौट चुके हैं।

घोषणापत्र
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र पर अमल कराना भी सीएम धामी के लिए बड़ी चुनौती होगा। भाजपा चुनाव घोषणा पत्र में कामन सिविल कोड लागू करने का बड़ा वादा किया। इसके साथ ही बीपीएल महिलाओं को साल में तीन मुफ्त सिलेंडर, कामगारों और गरीब महिलाओं को मासिक पेंशन, किसानों को केंद्र के समान सम्मान निधि समेत कई वायदे किए हैं। राज्य की कमजोर माली हालत के बीच इन वादों को पूरा करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी भी है।

 

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