हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता राजा वीरभद्र सिंह का 87 साल की उम्र में गुरुवार 8जुलाई को निधन हो गया। वीरभद्र सिंह बुशहर रियासत के अंतिम शासक के रूप में 122 वें शासक रहे। सांगला वैली में ऐतिहासिक गांव कामरू से बुशहर रियासत का नाता सदियों से जुड़ा है, जानकारी के लिए पढ़िए पूरी खबर.

VS CHAUHAN KI REPORT

हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता राजा वीरभद्र सिंह का 87 साल की उम्र में गुरुवार 8 तारीख को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे। उन्होंने सुबह 3:40 बजे शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGMC) अस्पताल में आखिरी सांस ली। यहां वे करीब दो महीने से भर्ती थे। सोमवार को उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।वीरभद्र सिंह को दो बार कोरोना हुआ। पहली बार 12 अप्रैल और दूसरी बार 11 जून को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।

 

वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून 1934 को हुआ। उनके पिता पदम सिंह बुशहर रियासत के राजा थे।वीरभद्र सिंह 1962 में पहली बार महासू सीट से लोकसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद वे 1967, 1971, 1980 और 2009 में भी लोकसभा के लिए चुने गए। वीरभद्र पहले रोहड़ू सीट से विधानसभा चुनाव लड़ते थे। बाद में रोहड़ू सीट आरक्षित हुई तो उन्होंने 2012 में शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा। 2017 में उन्होंने यह सीट बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए छोड़ दी और खुद अर्की से चुनाव लड़े। अभी वे अर्की सीट से विधायक थे।

1983 में पहली बार CM बने, केंद्रीय मंत्री भी रहे
वीरभद्र सिंह ने 1983 से 1985 तक पहली बार, 1985 से 1990 तक दूसरी बार, 1993 से 1998 तक तीसरी बार, 1998 में कुछ दिन के लिए चौथी बार, 2003 से 2007 तक पांचवीं बार और 2012 से 2017 तक छठी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

राजा वीरभद्र सिंह का अंतिम संस्कार जोबनी बाग रामपुर में राजकीय सम्मान के साथ किया गया . जोबनी बाग में राज परिवार के लिए अलग से ही स्थान निर्धारित किया गया है। जहां पर केवल राज परिवार के लोगों का ही अंतिम संस्कार किया जाता है।

आज भी जोबनी बाग में राज परिवार के पूर्वजों के स्मारक देखे जा सकते हैं, जहां पर केवल राज परिवार के सदस्यों का ही अंतिम संस्कार किया जाता है। हालांकि इसके साथ ही आम लोगों के अंतिम संस्कार के लिए भी स्थान बनाया गया है। राज परिवार के किसी सदस्य के अंतिम संस्कार के बाद यहां पर स्मारक या समाधी बनाने की भी परंपरा है। यहां पर राजा वीरभद्र सिंह के पिता राजा पदम देव सिंह सहित अन्य परिवार के सदस्यों की भी समाधियां बनाई गई हैं।

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की सैंज घाटी के शांघड़ में भी बुशहर के राजा का प्राचीन सिंहासन है। इस पर अब तक 122 राजाओं में से मात्र दो ही राजा विराजमान हुए हैं। सैकड़ों साल पहले सिंहासन पर बैठे राजा भादर सिंह के बाद 9 दिसंबर 2016 को राजा बुशहर और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को इस अति पवित्र माने जाने वाले सिंहासन पर बैठने का मौका मिला था। वीरभद्र सिंह के पुत्र से अब विक्रमादित्य के राजतिलक के बाद स्थानीय लोगों को बुशहर राजघराने से पुराने रिश्ते बरकरार रखने की उम्मीद है।

शांघड़ के ऐतिहासिक मैदान के एक छोर पर अभी यह सिंहासन यथावत है। इस पर बुशैहर के राजा के अलावा किसी को बैठने की अनुमति नहीं है। इस जगह को स्थानीय भाषा में राय-री-थल कहा जाता है। विक्रमादित्य सिंह बुशहर के 123वें राजा हैं। इस आसन पर बैठने का अधिकार उनका है। कहा जाता है कि शांघड़ का ऐतिहासिक मैदान कभी वीरभद्र सिंह के पूर्वजों की निजी संपत्ति हुआ करता था। बाद में लगभग 550 बीघा का मैदान उन्होंने देवता के नाम कर दिया।

हिमाचल प्रदेश की छह बार कमान संभाल चुके पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का सांगला वैली स्थित कामरू मंदिर से गहरा नाता है। इतिहास में दर्ज अभिलेख के मुताबिक राजा वीरभद्र सिंह ने कृष्ण वंश के 122वें राजा के रूप में बुशहर रियासत की राजगद्दी संभाली, जबकि इससे पूर्व किन्नौर जिले का कामरू गांव कृष्ण वंश के राजाओं की रियासत हुआ करती थी। रामपुर रियासत की नींव वीरभद्र सिंह के दादा राजा केहर सिंह ने 16वीं शताब्दी में रखी थी। हालांकि कामरू गांव से आज भी राज परिवार का गहरा संबंध है।

 

वीरभद्र सिंह बुशहर रियासत के अंतिम शासक के रूप में 122 वें शासक रहे। सांगला वैली में ऐतिहासिक गांव कामरू से बुशहर रियासत का नाता सदियों से जुड़ा है, जिसका जीता जागता प्रमाण कामरू गांव का ऐतिहासिक किला है। इस ऐतिहासिक किले से राज परिवार का गहरा संबंध है। कामरू रियासत के साथ-साथ जब राज्य का क्षेत्रफल बढ़ता गया तो वीरभद्र सिंह के पूर्वजों ने कामरू गांव से आकर शिमला जिले के (शोणितपुर) सराहन और रामपुर के राज दरबार स्थापित किए गए।

राजसी परंपरा के मुताबिक बुशहर रियासत के नवनियुक्त राजा का जब भी राजतिलक किया जाता था तो राजा को 6 माह के भीतर कामरू गांव में आकर ईष्ट देवता श्री बद्री विशाल जी के समक्ष राजतिलक होना अनिवार्य रहता था। यदि किसी कारणवश राजा छह माह तक मंदिर में अपनी हाजिरी नहीं भर पाते थे तो उनसे राजतिलक की परंपरा अधूरी जाती रह जाती थी। यही नहीं बुशहर रियासत की शाही मोहर और राजगद्दी में भी ईष्ट देवता श्री बद्री विशाल जी की तस्वीर और नाम साफ अंकित है।

 

 

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