उत्तराखंड गौरा देवी के गांव रैणी पर भूस्खलन ने संकट के बादल खड़े कर दिए हैं। बारिश से नम हुई गांव की तलहटी को ऋषिगंगा नदी तेजी से काट रही है। कुछ दिन से मौसम खराब होने पर लोग गांव से ऊपर पहाड़ चढ़ कर वहां गुफाओं में शरण लेने को मजबूर हुए थे।

VSCHAUHAN KI REPORT

उत्तराखंड में पेड़ों से चिपक कर उनकी रक्षा कर पूरी दुनिया को एक संदेश देने वाली गौरा देवी के गांव रैणी पर भूस्खलन ने संकट के बादल खड़े कर दिए हैं। बारिश से नम हुई गांव की तलहटी को ऋषिगंगा नदी तेजी से काट रही है। इसके चलते कुछ मकान ध्वस्त हुए हैं,

घर, आंगन और खेतों में पड़ रही दरारें ग्रामीणों में खौफ भर रही हैं। गांव के 60 परिवारों के करीब 350 बाशिंदों के सामने यह सवाल है कि वे कहां जाएं। कुछ दिन से मौसम खराब होने पर लोग गांव से ऊपर पहाड़ चढ़ कर वहां गुफाओं में शरण लेने को मजबूर हुए थे।

आशंकाएं सच होने लगी हैं
ग्रामीणों ने बीआरओ के सड़क कटिंग के कार्य से गांव को होने वाले संभावित खतरों को लेकर चिंता जताई है। इस पर संयुक्त मैजिस्ट्रेट/उप जिला मैजिस्ट्रेट जोशीमठ ने बीआरओ के अधिकारियों से वार्ता करते हुए सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखने की हिदायत दी है। वहीं पुरानी सड़क गांव के नीचे तो साफ हो चुकी है, कुछ और स्थानों पर भी दरक रही है। सेना की ओर से बनाया गया वैलीब्रिज भी गिरने की कगार पर है।

गौरा देवी म्यूजियम और प्रतिमा के पिलर तोड़ते वक्त गांव वाले बिलख रहे थे। रैणी गांव दो तरफ से ऋषिगंगा से घिर गया है और धंस रहा है। ग्रामीण कुंदन सिंह और संग्राम सिंह ने ऋषिगंगा परियोजना के निर्माण के वक्त हुए धमाकों से घबरा कर जो आशंकाएं व्यक्त की थीं और जिन चिंताओं को लेकर उन्होंने कुछ पर्यावरणविदों की मदद से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी, वे सच हो रहीं हैं।

अब तो वहां भी पहाड़ धंसने लगे हैं। जिनके बच्चे बाहर मैदानी शहरों में नौकरी करते हैं और जिनके दूसरे कस्बों- शहरों में घर हैं, वे चले गए। बाकी जिनका गांव के अलावा कहीं ठिकाना नहीं है, वे अपने मवेशियों को लेकर कहां जाएं।

गांव में भूस्खलन के खतरे को देखते हुए जिला प्रशासन ने जियोलॉजिकल टीम के जरिये रैणी गांव क्षेत्र का भूगर्भीय सर्वेक्षण कराया। साथ ही प्रभावित परिवारों के विस्थापन के लिए प्रशासन ने चिह्नित भूमि का भी सर्वे किया। प्रशासन के अनुसार जियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद आगे कार्रवाई की जाएगी।

बीआरओ ने मुआवजा देने का दिया भरोसा
रैणी गांव में जोशीमठ-मलारी हाइवे का लगभग 40 मीटर हिस्सा भूस्खलन से जमींदोज हो गया था। इसके चलते चीन सीमा से जुड़े गांवों के साथ ही सेना और आईटीबीपी की चौकियों का संपर्क कट गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के हिसाब से महत्वपूर्ण मोटर मार्ग होने के कारण यहां पर सड़क बनाना बहुत जरूरी है। हिल साइड कटिंग में जो भी भूमि भवन प्रभावित हो रहे थे उनको बीआरओ ने पूरा मुआवजा देने का भरोसा दिया।

स्कूलों में अस्थायी इंतजाम
जोशीमठ-मलारी राजमार्ग पर हुए भूस्खलन के बाद जिला प्रशासन ने भूस्खलन क्षेत्र के करीब रह रहे लोगों का अस्थाई रूप से विस्थापन कर रैणी चक लाता के राजकीय प्राथमिक विद्यालय और राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में रहने की व्यवस्था की है। इन विद्यालयों में प्रभावितों के लिए बिजली, पानी, रजाई, गद्दे, साफ-सफाई की व्यवस्था की गई है। लेकिन गांव के लोगों का कहना है कि यहां भी धसाव हो रहा है।

आशंकाएं सच होने लगी हैं
ग्रामीणों ने बीआरओ के सड़क कटिंग के कार्य से गांव को होने वाले संभावित खतरों को लेकर चिंता जताई है। इस पर संयुक्त मैजिस्ट्रेट/उप जिला मैजिस्ट्रेट जोशीमठ ने बीआरओ के अधिकारियों से वार्ता करते हुए सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखने की हिदायत दी है। वहीं पुरानी सड़क गांव के नीचे तो साफ हो चुकी है, कुछ और स्थानों पर भी दरक रही है। सेना की ओर से बनाया गया वैलीब्रिज भी गिरने की कगार पर है।

गौरा देवी म्यूजियम और प्रतिमा के पिलर तोड़ते वक्त गांव वाले बिलख रहे थे। रैणी गांव दो तरफ से ऋषिगंगा से घिर गया है और धंस रहा है। ग्रामीण कुंदन सिंह और संग्राम सिंह ने ऋषिगंगा परियोजना के निर्माण के वक्त हुए धमाकों से घबरा कर जो आशंकाएं व्यक्त की थीं और जिन चिंताओं को लेकर उन्होंने कुछ पर्यावरणविदों की मदद से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी, वे सच हो रहीं हैं।

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