ये कहानी ऐसे स्टार पहलवान की है, जो अब Most Wanted है. इस पहलवान का नाम है सुशील कुमार .2008 के ओलम्पिक खेलों में देश के लिए कांस्य पदक जीता. उन पर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में 4 मई को हुई पहलवान सागर धनखड़ की हत्या में शामिल होने का आरोप है. तभी से सुशील कुमार फ़रार हैं.

वीएस चौहान की रिपोर्ट

ये कहानी ऐसे स्टार पहलवान की है, जो अब Most Wanted है. दिल्ली पुलिस ने उस पर 1 लाख रुपये का इनाम रखा है. इस पहलवान का नाम है सुशील कुमार. उन पर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में 4 मई को हुई पहलवान सागर धनखड़  की हत्या में शामिल होने का आरोप है. तभी से सुशील कुमार फ़रार हैं. किसी को नहीं पता कि सुशील कुमार कहां हैं.

कुश्ती में 56 साल का सूखा खत्म किया

सोचिए एक ऐसा पहलवान, जिसने 56 वर्ष के लम्बे इंतज़ार को समाप्त करके वर्ष 2008 के ओलम्पिक खेलों में देश के लिए कांस्य पदक जीता. फिर 2012 के ओलम्पिक खेलों में सिल्वर मेडल जीता. जिसे राष्ट्रपति ने वर्ष 2011 में पद्मश्री से सम्मानित किया. वो पहलवान आज हत्या के आरोप में पुलिस से भागता फिर रहा है. मतलब दुनिया कितनी छोटी होती है. सुशील कुमार  ने तो इस छोटी सी दुनिया में सबकुछ देख लिया.

सुशील कुमार पर 1 लाख का इनाम

इसलिए हम आपको अपने विश्लेषण में ये बताएंगे कि कैसे सुशील कुमार देश के Most Successful Wrestler से Most Wanted आरोपी बन गए हैं और उन पर 1 लाख रुपये का इनाम है. सुशील कुमार की सफलता की कहानी भी दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम से शुरू होती है और हत्या का संगीन आरोप भी उन पर इसी छत्रसाल स्टेडियम  में लगा है. यानी छत्रसाल स्टेडियम से सुशील कुमार  का गहरा नाता रहा है. ये स्टेडियम उनके नियंत्रण और दबदबे की कहानी भी बताता है.

सबसे पहले हम आपको ये बताते हैं कि ये पूरा मामला क्या है?

छत्रसाल स्टेडियम में 4 मई को पहलवान सागर धनखड़ और उनके दोस्तों पर हमला हुआ था. इस दौरान उनके साथ काफ़ी मारपीट की गई. इसी हमले में पहलवान सागर धनखड़ की मौत हो गई और उनकी हत्या का आरोप सुशील कुमार और उनके कुछ साथी पहलवानों पर लगा. इस घटना के बाद एक वीडियो भी मिला. जिसमें साफ़ दिख रहा है कि पहलवान सागर धनखड़ की हत्या के बाद सुशील कुमार छत्रसाल स्टेडियम से अपनी गाड़ी से बाहर निकले थे. यानी हत्या के दौरान वो अन्दर ही मौजूद थे.

पुलिस के पास सुशील के खिलाफ ठोस सबूत

पुलिस के मुताबिक़ उसके पास सुशील कुमार के ख़िलाफ़ हत्या में शामिल होने के ठोस सबूत हैं. यही वजह है कि सुशील कुमार पुलिस से भाग रहे हैं. हालांकि पहलवान सागर धनखड़ की हत्या क्यों हुई, इसके पीछे फिलहाल तीन कारण बताए जा रहे हैं.

पहला कारण – पहलवान सागर धनखड़ और सुशील कुमार के बीच पैसों को लेकर विवाद था, जिसकी वजह से संभव है कि सागर की हत्या कर दी गई.

दूसरा कारण- सागर पहलवान, सुशील कुमार  के मकान में किराए पर रहता था और सुशील कुमार ने उन्हें ये मकान ख़ाली करने के लिए नोटिस भेजा था लेकिन सागर धनखड़ इसके लिए तैयार नहीं था. जिसके बाद दोनों में टकराव बढ़ गया और इसीलिए हत्या का एक कारण ये भी हो सकता है.

और तीसरा कारण Gang Rivalry माना जा रहा है. सागर धनखड़ की हत्या के साथ इस हमले में घायल हुआ उनका दोस्त सोनू एक ख़तरनाक गैंग से जुड़ा हुआ है और पुलिस ने भी ये बात मानी है. इसलिए इस हत्याकांड की जांच Gang Rivalry के पहलू से भी की जा रही है.

छत्रसाल स्टेडियम है हत्या के केंद्र में

हालांकि इस पूरे मामले के केन्द्र में दो चीज़ें हैं. पहली है ख़ुद पहलवान सुशील कुमार और दूसरा है छत्रसाल स्टेडियम.

4 मई को हुई पहलवान सागर धनखड़ की हत्या ने ना सिर्फ़ सुशील कुमार की छवि को ख़राब किया है बल्कि भारत में कुश्ती का मक्का माने जाने वाले दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम की प्रतिष्ठा को भी नुक़सान पहुंचाया है. इसलिए आज आपको छत्रसाल स्टेडियम के अन्दर की राजनीति के बारे में भी बताना चाहते हैं कि कैसे छत्रसाल स्टेडियम  कुछ बड़े पहलवानों के लिए एक Power Centre बन कर रह गया है.

सुशील कुमार 14 वर्ष की उम्र से दिल्ली के इसी छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग ले रहे हैं. वर्ष 2012 में जब पहली बार इस स्टेडियम के दो पहलवानों ने ओलम्पिक खेलों में भारत के लिए पदक जीते तो ये छत्रसाल स्टेडियम सभी पहलवानों के लिए कुश्ती का मक्का बन गया. महत्वपूर्ण बात ये है कि इस साल के Tokyo Olymics में भी छत्रसाल स्टेडियम के तीन-तीन पहलवान इसमें हिस्सा ले रहे हैं.

इनमें पहले पहलवान हैं रवि दहिया. दूसरे पहलवान हैं दीपक पुनिया और तीसरे पहलवान हैं बजरंग पुनिया, जो इस बार देश के लिए पदक लाने वाले दावेदारों की सूची में पहले स्थान पर हैं.

इन तमाम बातों से आप समझ सकते हैं कि कैसे छत्रसाल स्टेडियम कुश्ती के अखाड़े में अपना दबदबा बनाए हुए है. हालांकि इस स्टेडियम में कुश्ती के दांव पेंच पर राजनीति के दांव पेंच काफ़ी हावी हैं. अब आपको इसके बारे में भी बताते हैं.

पहलवान सतपाल सिंह का मिलता रहा संरक्षण

सुशील कुमार  के कोच सतपाल सिंह काफ़ी लम्बे समय से छत्रसाल स्टेडियम  में पहलवानों को कुश्ती के दांव पेंच सिखाते आए हैं. माना जाता है कि एक समय इस स्टेडियम में सतपाल सिंह का काफ़ी प्रभाव था और सुशील कुमार उनके चहेते पहलवान थे. वर्ष 2016 में जब सतपाल सिंह छत्रसाल स्टेडियम के Additional Director के पद से रिटायर हुए तब उन्होंने सुशील कुमार को इस स्टेडियम के एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त करवा दिया.

सुशील कुमार की ये नियुक्ति इसलिए भी विवादों से रही क्योंकि वो उस समय बतौर प्रोफेशनल पहलवान अलग-अलग प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे थे. यही नहीं इस नियुक्ति से पहले उनकी शादी अपने कोच सतपाल सिंह की बेटी सवी कुमार से हो चुकी थी. यही वजह है कि तब कई लोगों ने ये कहा कि सुशील कुमार को सतपाल सिंह की पहुंच का लाभ मिला है.

छत्रसाल स्टेडियम में चलाई गई मनमानी

सबसे अहम बात ये है कि सुशील कुमार की नियुक्ति से सतपाल सिंह को भी फायदा पहुंचा और रिटायरमेंट के बाद भी स्टेडियम के अंदरुनी मामलों में उनका दख़ल दिखा. ऐसे भी आरोप लगे कि जो पहलवान सुशील कुमार कैंप का समर्थन नहीं करते थे, उन्हें स्टेडियम छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाता था. पहलवान योगेश्वर दत्त और पहलवान बजरंग पुनिया ने जब छत्रसाल स्टेडियम  को छोड़ा तो तब भी ऐसी बातें कही गई थीं.

इन दोनों पहलवानों ने कुश्ती की ट्रेनिंग छत्रसाल स्टेडियम  में ली लेकिन अब वो इससे अलग हो चुके हैं. योगेश्वर दत्त इसलिए अलग हुए क्योंकि उन्होंने वर्ष 2018 के एक मामले में सुशील कुमार के ख़िलाफ़ जाकर पहलवान नरसिंह यादव का साथ दिया था. वहीं बजरंग पुनिया के अलग होने की वजह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाई है. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उन्हें भी सुशील कुमार कैम्प का साथ नहीं देने पर स्टेडियम छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. यानी अब इस हत्या के मामले में भी गुटबाज़ी की आशंका जताई जा रही है.

15 साल की उम्र में जीता स्वर्ण पदक

सुशील कुमार  की ज़िन्दगी कुश्ती के एक मैच जैसी ही रही है. पहले राउंड में उन्होंने देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल लाने के लिए ख़ूब मेहनत की. इसके लिए उन्होंने कई तरह के त्याग भी किए. सुशील कुमार छोटी उम्र से ही कुश्ती के मशहूर कोच सतपाल सिंह से जुड़ गए थे. उन्होंने पहली बार 15 वर्ष की उम्र में World Cadet Games में स्वर्ण पदक जीता था. यानी पहले राउंड में वो सफल रहे.

अपनी ज़िन्दगी के दूसरे राउंड में उन्होंने एक के बाद एक कई मेडल देश के लिए जीते और वो ना सिर्फ़ देश के सबसे सफल पहलवान बने बल्कि देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में भी अपने लिए जगह बनाई. वर्ष 2008 के ओलम्पिक खेलों में सुशील कुमार ने भारत के लिए कुश्ती में 56 वर्षों के बाद कांस्य पदक जीता. इससे पहले ओलम्पिक खेलों में भारत को कुश्ती में वर्ष 1952 में कोई पदक मिला था तब मशहूर पहलवान K.D. Jadhav ने ये सफलता हासिल की थी.

ओलंपिक में मेडल जीतकर बने हीरो

सुशील कुमार ने इस राउंड में कोई Foul नहीं किया और वो दूसरे पहलवानों के लिए Role Model बन गए. वर्ष 2012 में जब ओलम्पिक खेलों का आयोजन London में हुआ, तब भी सुशील कुमार ने फ्री स्टाइल कुश्ती में भारत के लिए Silver Medal जीता. इस उपलब्धि के साथ ही सुशील कुमार भारत के पहले ऐसे ऐथलीट बन गए, जिन्होंने Individual Category में लगातार दो बार देश के लिए पदक अपने नाम किए.

ऐसा भी कहा जाता है कि सुशील कुमार  की इस उपलब्धि ने भारत को कई पहलवान दिए. हमारे देश में कुश्ती की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई. ख़ास कर ग्रामीण इलाक़ों में युवा कुश्ती के खेल की तरफ़ आकर्षित होने लगे. इसे आप कुछ बातों से भी समझ सकते हैं. वर्ष 2012 में सुशील कुमार के अलावा पहलवान योगेश्वर दत्त कुश्ती में कांस्य पदक जीते. योगेश्वर दत्त सुशील कुमार के बचपन के दोस्त हैं और वो भी छत्रसाल स्टेडियम में सुशील कुमार के साथ ट्रेनिंग लेते थे.

देश में पहलवानों के लिए बने मिसाल

फिर 2016 के Brazil Olympics में भारत की तरफ़ से साक्षी मलिक ने कुश्ती में कांस्य पदक जीता. और इसी दौरान भारत में कुश्ती की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि फ़िल्मों में भी इस विषय का काफ़ी प्रभाव दिखा. इस कड़ी में दो फिल्में सबसे ज़्यादा चर्चित रहीं, पहली फ़िल्म थी दंगल, जो वर्ष 2016 में आई थी. ये फिल्म पूर्व पहलवान महावीर फोगाट और उनकी रेसलर बेटियां गीता फोगाट और बबीता फोगाट के संघर्ष पर आधारित थी.

. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस साल होने वाले ओलम्पिक खेलों में भारत की तरफ़ से अब तक के सबसे ज़्यादा पहलवानों का दल हिस्सा ले रहा है. इसके पीछे कहीं ना कहीं सुशील कुमार का भी योगदान है. सुशील कुमार ने ही कुश्ती में मेडल के लिए 56 साल का सूखा ख़त्म किया था.

कई अवार्ड से सम्मानित हुए

इस दूसरे राउंड में सुशील कुमार ने ना सिर्फ़ देश का नाम ऊंचा किया, बल्कि उन्हें कई बड़े पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. वर्ष 2005 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से नवाज़ा गया. फिर 2009 में उन्हें भारत में खेलों के सबसे बड़े पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया. इसके बाद वर्ष 2011 में उन्हें London Olympics से एक साल पहले पद्म श्री भी मिला. यानी दूसरा राउंड भी पूरी तरह उनके नाम रहा.

अब बारी थी तीसरे राउंड की, जो सुशील कुमार (Sushil Kumar) के लिए बुरा साबित हुआ. इसकी शुरुआत आप वर्ष 2015 से मान सकते हैं. तब कोर्ट का सहारा लेने के बावजूद सुशील कुमार 2016 के ओलम्पिक खेलों में जगह नहीं बना पाए थे. इसके बाद 2018 के Commonwealth Games के Trials के दौरान जब सुशील कुमार ने पहलवान प्रवीण राणा को हरा दिया तो दोनों पहलवान के समर्थक आपस में भिड़ गए थे.

पहलवानों के बीच बढ़ी गुटबाजी

इस घटना से तब पहलवानों के बीच बढ़ती गुटबाज़ी का संकेत मिला था लेकिन तब Wrestling Federation ने इस पर कोई बड़ा क़दम नहीं उठाय़ा. उस समय पहलवान प्रवीण राणा ने ये आरोप लगाया था कि मैच के दौरान सुशील कुमार के समर्थक Referee को धमकी दे रहे थे, जिसकी वजह से जीत सुशील कुमार को मिली.

जिंदगी के तीसरे राउंड में हारते चले गए

इसके अलावा वर्ष 2020 के ओलम्पिक खेलों में भी सुशील कुमार ने जगह बनानी चाही लेकिन वो ट्रायल मैचों के दौरान हार गए. इस तरह वो ज़िन्दगी के तीसरे राउंड मे मुश्किल और चुनौतियों से पिछड़ते चले गए. आज की तारीख़ में सुशील कुमार क़ानून के लिए एक फ़रार आरोपी हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *