राजेंद्र सिंह की रिपोर्ट
चमोली जिले के सीमांत इलाक़े निजमुला घाटी में बसे गांव ईराणी के ग्राम प्रधान मोहन नेगी कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों से उनके गांव के करीब 80 प्रतिशत लोगों को बुखार है, कई लोगों को बुखार के साथ-साथ खाँसी-जुखाम की भी शिकायत है.
इस वक्त गांव में ऐसे हालात हैं कि पेरासिटामोल तक मिलनी मुश्किल है. उनके पास कुछ एक टेबलेट्स थीं लेकिन अब कोई दवा नहीं है.
अचानक लोगों को ये कैसा बुखार आया है इसका पता बिना टेस्टिंग के नहीं लगाया जा सकता है और टेस्टिंग की यहाँ कोई भी सुविधा मौजूद नहीं थी.
फिर बहुत ज्यादा दबाव डालने पर दो हफ्तों के बाद शुक्रवार को गांव में टेस्टिंग के लिए टीमें आईं और कुछ गांव वालों के सैम्पल लिए.
कंटेनमेंट ज़ोन बने गांव
जिन जगहों पर टेस्टिंग के बाद कोरोना के मरीज़ मिल रहे हैं, उन्हें कंटेनमेंट ज़ोन बनाया जा रहा है. टिहरी गढ़वाल के छाती गांव में पांच मई को कोरोना टेस्ट हुए थे.
अब तक इस गांव के 42 लोग संक्रमित पाए गए हैं, जिनमें गांव के केदार सिंह और उनका परिवार भी शामिल है.
अब प्रशासन ने इस गांव को कंटेनमेंट ज़ोन घोषित कर दिया है. पर केदार सिंह सरकारी सहायता से नाख़ुश हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “दवाइयों की जो किट दी गई है उसमें जो-जो चीजें लिखी गई हैं वह पूरी नहीं मिलीं हैं. किट में ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर का भी जिक्र किया गया है लेकिन यहां ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर दोनों गायब है, पूरे गांव के लिए सिर्फ पांच ऑक्सीमीटर और पांच थर्मामीटर दिए गए हैं.”
रुद्रप्रयाग ज़िले के प्रभारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मनोज बड़ोनी को गांव वालों की दिक्कतों के बारे में बताया गया.
डॉ. बड़ोनी ने बीबीसी से कहा, “रुद्रप्रयाग जिले के गांवों में अभी संक्रमण कम है. हमारी टीमें लगातार गांवों में जा रही हैं और आशा वर्कर कोविड की दवाइयों की किट बांट रही हैं.”
लेकिन डॉक्टर बड़ोनी ने गांवों में दवाइयां और आशा वर्करों के पास पर्याप्त सुरक्षा उपकरण न होने के आरोपों को खारिज कर दिया. उनका कहना है कि दवाइयां पर्याप्त हैं और साथ ही आशा वर्करों के पास भी पर्याप्त पीपीई किट और ग्लव्स मौजूद हैं.
हालांकि, ग्राम प्रधानों को उनके गांवों के संक्रमित लोगों के बारे में जानकारी न देने की बात डॉक्टर बड़ोनी ने मानी. लेकिन, उन्होंने कहा कि एक ग्रुप बनाया गया है जहाँ जनप्रतिनिधियों से सूचनाएं साझा की जाती हैं.