जनरल ओबीसी वर्ग के कुछ कर्मचारी अब यह कह रहे हैं कि वह हड़ताल में शामिल ही नहीं हुए थे। ऐसे में फरवरी और मार्च महीने की उनकी तनख्वाह बिना किसी कटौती के स्वीकृत की जाए। हालांकि, उनके इस तर्क को तभी माना जाएगा जब विभागाध्यक्ष हड़ताल में शामिल न होने की पुष्टि कर दें या संगठन इसकी तस्दीक कर दे। कर्मचारियों के इस प्रयास पर उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन ने हैरानी जताते हुए कहा कि अगर ऐसा है तो कर्मचारियों के बारे में संगठन जांच के बाद उचित फैसला लेगा।
बिना आरक्षण पदोन्नति बहाली के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन के बैनर तले कर्मचारियों ने हक पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। दो से 18 मार्च तक पूर्ण रूप से हड़ताल पर रहने के बाद आखिरकार सरकार को पदोन्नति बहाली का आदेश जारी करना ही पड़ा। लेकिन इन सबके बीच जो सबसे बड़ी बाधा आई, वह यह कि कर्मचारियों को न तो मार्च महीने में फरवरी महीने का वेतन मिला और अब अप्रैल में मार्च महीने का वेतन मिल पाया।
सवाल यह था कि सरकार ने हड़ताल के दौरान नो वर्क नो पे का आदेश लागू कर दिया था। हड़ताल खत्म होने के बाद जब कर्मचारियों को लगा कि उनकी हड़ताल की अवधि में तनख्वाह कट जाएगी, तो मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव से मिले। सरकार ने आश्वासन दिया कि जिन कर्मचारियों की ईएल बची हुई हैं, उनकी ईएल को समायोजित करते हुए तनख्वाह जारी कर दी जाए। इस बाबत सरकार की ओर से आदेश भी जारी हो गया। लेकिन मामला तब और पेचीदा हो गया जब विभागों ने कर्मचारियों से ईएल स्वीकृति का प्रमाणपत्र मांगा जाने लगा।
इस पर कई कर्मचारी ये कहने लगे कि वह हड़ताल में शामिल ही नहीं हुए थे। इसलिए प्रमाण पत्र देने का औचित्य नहीं बनता। फिलहाल एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष दीपक जोशी का कहना है कि हड़ताल में शामिल न होने की बात करना हास्यास्पद है। हमारे पास हर एक कर्मचारी का रिकार्ड है। अभी प्राथमिकता वेतन जारी कराने की है। इस स्थिति पर निर्णय संगठन के स्तर पर लिया जाएगा।